ईश के दरबार में भी भेदभाव......
ईश के दरबार में भी भेदभाव…….. हम सभी जानते हैं, प्रायः कहते हैं और कहीं न कहीं पढ़े या सुनें होते हैं कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में रहता है। अपनी आवश्यकताओं को परस्पर सहयोग से पूरा करता है। एक दूसरे के सुख-दुःख में शामिल होता है। सभी एक जैसे हैं तो फिर उनके साथ भेदभाव पूर्ण व्यवहार क्यों किया जाता है….? ऐसी विषमता अपनों के बीच प्रायः देखने को मिलती है। क्या आपने कभी इस तरफ गौर किया है..? या आपने कभी सोचने की कोशिश किया कि ऐसा क्यों हो रहा है..? कई बार तो सुशिक्षित, सुसभ्य और सुसंस्कृत कहलाने वाले भद्र पुरुषों को भी ऐसा व्यवहार करते हुए देखते हैं तो मन असह्य वेदना से पीड़ित हो उठता है। विचारों में तरह-तरह के सवाल उठने लगते हैं जो अंतर्मन को झकझोर कर रख देते हैं। सोच-विचार के बाद मन को समझाने में कामियाबी मिलती है कि ये सब मनुष्य की मनोवृत्ति की देन है अर्थात मनुष्यगत स्वभाव है। लेकिन जबतक ये समाज में अपनों के बीच करता रहा तबतक तो सहिष्णु बने रहे। पर ये तो सारी मर्यादाओं की पराकाष्ठा को पार करते हुए ईश्वर के दरबार तक पहुँच गया। जहाँ पर त्याग, सेवा, समर्पण, पवित्रता और शुचित...