रह जाता कोई मोल नहीं
रह जाता कोई मोल नहीं जब जीवन की आपाधापी से टूट चुका हो मानव मन फिर आशा की किरणों का रह जाता कोई मोल नहीं। जब मन तानों से आहत हो दिल भी छलनी हो जाए फिर मधुर प्रिय वचनों का रह जाता कोई मोल नहीं। जब सुख-सुविधाओं का खान हो पर काया रोगों से घिरा हो फिर पास पड़े धन दौलत का रह जाता कोई मोल नहीं। जब धरती तपती हो कड़ी धूप से मिट्टी धूल बन करके उड़े ऐसे में बीज बोआई का रह जाता कोई मोल नहीं। जब अपने और पराये भी मुसीबत में साथ खड़े न हो फिर सुख में साथ होने का रह जाता कोई मोल नहीं। जब जवानी भर नींद में सोया कीमती वक़्त को यों खोया फिर बुढ़ापे में पछतावे का रह जाता कोई मोल नहीं। जब जीवन भरा हो खुशियों से हर रोज नयी खुशखबरी हो फिर सुख के इंतज़ारों का रह जाता कोई मोल नहीं। बेईमानों का साम्राज्य जहाँ हो ईमानदारों का नामोनिशान न हो फिर न्याय के नित्य प्रतीक्षा का रह जाता कोई मोल नहीं। ➖ प्रा. अशोक सिंह….✒️ 9867889171