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रह जाता कोई मोल नहीं

  रह जाता कोई मोल नहीं जब जीवन की आपाधापी से टूट चुका हो मानव मन फिर आशा की किरणों का रह जाता कोई मोल नहीं। जब मन तानों से आहत हो दिल भी छलनी हो जाए फिर मधुर प्रिय वचनों का रह जाता कोई मोल नहीं। जब सुख-सुविधाओं का खान हो पर काया रोगों से घिरा हो फिर पास पड़े धन दौलत का रह जाता कोई मोल नहीं। जब धरती तपती हो कड़ी धूप से मिट्टी धूल बन करके उड़े ऐसे में बीज बोआई का रह जाता कोई मोल नहीं। जब अपने और पराये भी मुसीबत में साथ खड़े न हो फिर सुख में साथ होने का  रह जाता कोई मोल नहीं। जब जवानी भर नींद में सोया कीमती वक़्त को यों खोया फिर बुढ़ापे में पछतावे का रह जाता कोई मोल नहीं। जब जीवन भरा हो खुशियों से हर रोज नयी खुशखबरी हो फिर सुख के इंतज़ारों का रह जाता कोई मोल नहीं। बेईमानों का साम्राज्य जहाँ हो ईमानदारों का नामोनिशान न हो फिर न्याय के नित्य प्रतीक्षा का रह जाता कोई मोल नहीं। ➖ प्रा. अशोक सिंह….✒️        9867889171

हे कवि मन हिंदी की जय बोल

  हे कवि मन, हिंदी की जय बोल जिसने निजभाषा का मान बढ़ाया हिंदी को जन - जन तक पहुँचाया राजभाषा का दर्जा भी दिलवाया हे कवि मन, हिंदी की जय बोल। जो घर-घर में बोली जाती है जो सबके मन को हरसाती है सभी जाति धरम को भाती है हे कवि मन हिंदी की जय बोल। जिसके बावन अक्षर होते हमारे कवि जिससे प्रकृति को चितारे जो जनमानस के भाग्य सँवारे हे कवि मन, हिंदी की जय बोल। तुलसी सूर जिसके हैं नगमें दूजी भाषा कहाँ है जग में लगी हो बिंदी जिसके माथे में हे कवि मन हिंदी की जय बोल। गंगा जैसी लगती जो पावन महीनें में समझो तुम सावन भाषाओं में जो लगे लुभावन हे कवि मन हिंदी की जय बोल। बचपन से जिसने साथ निभाया यौवन प्रीति का पाठ पढ़ाया ज्ञान अमृत का पान कराया हे कवि मन हिंदी की जय बोल। जिससे गागर में सागर भरते गहरे पानी में गोता लगाते परिश्रम का मीठा फल पाते हे कवि मन हिंदी की जय बोल। जिसने जीने का राह दिखाया रामचरित मानस रचवाया बहुजन हिताय को श्रेष्ठ बताया हे कवि मन हिंदी की जय बोल। जिसके बोल लगते अनमोल सुनने में मिसरी के घोल बाजे में समझो इसे ढोल हे कवि मन हिंदी की जय बोल। जिससे सीखे वंदन अभिनंदन विनम्र होकर करते जो नम

ऑनलाइन हिंदी काव्य-पाठ समारोह संपन्न

  रिज़वी महाविद्यालय में ऑनलाइन मंच के माध्यम से दो दिवसीय  'हिंदी काव्य-पाठ समारोह' सम्पन्न रिज़वी महाविद्यालय कला, विज्ञान एवं वाणिज्य के कनिष्ठ महाविद्यालय हिंदी विभाग के तत्वाधान में हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में दो दिवसीय 'हिंदी काव्य-पाठ समारोह' का आयोजन संपन्न हुआ। दोनों दिन समारोह का शुभारंभ सरस्वती वंदना से किया गया। पहले दिन दिनांक 21 सितंबर 2020 को कनिष्ठ महाविद्यालय के 20 विद्यार्थियों ने काव्य-पाठ में हिस्सा लिया और देशभक्ति व राष्ट्रप्रेम की भावनाओं से ओतप्रोत काव्य-पाठ से आभासीय मंच को सजीवता प्रदान किया। जिसमें लगभग 100 से अधिक लोंगों ने ऑनलाइन उपस्थिति दर्ज कराई। इस काव्य-पाठ में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले छात्रों का विवरण इस प्रकार रहा ➖ प्रथम पुरस्कार कु. हाशमी असफिया, द्वितीय पुरस्कार कु.शेख समरीन, तृतीय पुरस्कार आलिया खान और प्रोत्साहन पुरस्कार कु.महक फूलचंद और कु. इंशा फातिमा को मिला। दूसरे दिन दिनांक 22 सितंबर 2020 को 14 प्राध्यापकों ने स्वरचित काव्य-पाठ से न सिर्फ लोंगों का मन मोह लिया अपितु अपने सृजनात्मक कला का भी परिचय दिया। समारोह के मंचसंचालन का

बदलते परिवेश में शिक्षकों का उत्तरदायित्व

 बदलते परिवेश में शिक्षकों का उत्तरदायित्व हमारे धर्मशास्त्रों व ग्रंथों में माता, पिता, गुरू तीनों को बालक के जीवन निर्माण में महत्त्वपूर्ण माना है। माता-पिता उसका पालन-पोषण, संवर्द्धन करते हैं तो गुरू उसके बौद्धिक, आत्मिक, चारित्रिक गुणों का निर्माण व विकास करता है, उसे जीवन और संसार की शिक्षा देता है। उसकी चेतना को जागरूक बनाता है। इसीलिए हमारे यहाँ आचार्य, गुरु को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है, 'गुरूदेवो भवः' अर्थात गुरू को देव के समान पूजनीय माना गया है। माता-पिता के बाद गुरू का ही श्रेष्ठ स्थान होता है।  गोस्वामी तुलसीदास जी की पंक्तियाँ इसे चरितार्थ करती हैं और गुरू के स्थान को दर्शाती हैं ➖ "बंदउ गुरु पद पदुम परागा, सुरुचि सुभाष सरस अनुरागा। प्रातकाल उठिके रघुनाथा, मातु पिता गुरु नावहिं माथा।" गुरू मतलब आज का शिक्षक,  शिक्षक के शिक्षण, उसके जीवन व्यवहार, चरित्र से ही बालक जीवन जीने का ढंग सीखता है, शिक्षक की महती प्रतिष्ठा हमारे यहाँ इसीलिए हुई है। अध्यापक और विद्यार्थी के बीच जो स्नेह भाव, आत्मीयता, सौहार्द्र, समीपता की आवश्यकता है, वह आज नहीं है और यही कारण

हिंदी अध्यापक संघ मुंबई विभाग द्वारा आयोजित 'शिक्षक दिवस समारोह'

  कनिष्ठ महाविद्यालय हिंदी अध्यापक संघ द्वारा आयोजित 'शिक्षक दिवस समारोह' कनिष्ठ महाविद्यालय हिंदी अध्यापक संघ मुंबई विभाग द्वारा ऑनलाइन वेबिनार के माध्यम से आयोजित 'शिक्षक दिवस समारोह' दिनांक 8 सितंबर, 2020 को सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस के दिन ही 'शिक्षक दिवस समारोह' का आयोजन हिंदी अध्यापक संघ की दूरदर्शी दृष्टिकोण को दर्शाता है। समारोह का शुभारंभ शाम 5.40 को भारतीय परंपरा व संस्कृति का निर्वाह करते हुए प्रा. निशा दीक्षित ( हिंदुजा कॉलेज ) की सुरीली मधुर स्वर में सरस्वती वंदना व गणपति वंदना के साथ हुआ।  प्रा.अशोक सिंह (रिज़वी महाविद्यालय मुंबई ) द्वारा बहुत ही गर्मजोशी के साथ श्रद्धा सुमन रूपी शब्दों के गुलदस्तों से मुख्य अतिथि डॉ. मिलिंद कांबले ( अध्यक्ष कनिष्ठ महाविद्यालय हिंदी अध्यापक संघ महाराष्ट्र राज्य ), विशिष्ट अतिथि डॉ. माधुरी छेड़ा (सेवानिवृत्त हिंदी प्रोफेसर व विभागाध्यक्ष एस. एन. डी. टी. महिला महिला विश्वविद्यालय ) एवं विशेष अतिथि प्रा. मिलिंद जाधव जी ( लेखक, कवि, अध्यापक मस्कट व बहरीन ) का हार्दिक अभिनंदन व स्वागत किया गया।

असहिष्णुता.....

 असहिष्णुता…. मनुष्य के जीवन में उसके व्यक्तित्व और सोच-विचार पर खान-पान व रहन-सहन का बहुत असर पड़ता है। कहा जाता है जैसा खान-पान, वैसा अचार-विचार। अर्थात सादा जीवन, सादा भोजन - उच्च विचार। जिस तरह से फसल को समय-समय से सींचा जाता है, खाद-पानी दिया जाता है तो उसका समुचित विकास होता है। जिसका उचित देखभाल नहीं होता है उसका विकास रुक जाता है। जैसे कुछ बीज ले लीजिए और उसे तीन तरह के स्थान पर डाल दीजिए। आप देखेंगे कि जो बीज पत्थरीले स्थान पर गिरा होता है वह सूख कर नष्ट हो जाता है। जो बीज कंकरीले या कम उपजाऊ जमीन पर गिरा था उसका अंकुरण तो होता है पर विकास प्रभावित होता है। जो बीज उपजाऊ जमीन पर पड़ा था और जिसे समुचित मात्रा में पानी और प्रकाश मिला वो पूरी तरह विकसित होता गया। ठीक उसी तरह से खान-पान की सामग्रियों का असर मनुष्य के सोच-विचार और  आचरण पर पड़ता है। आज मनुष्य स्वार्थी बनकर चंद मुनाफे के लिए हर चीज में मिलावट करने लगा है। उस मिलावट का असर लोंगों के सेहत के साथ -साथ सोच-विचार पर स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है। आज दूध में मिलावट, तेल में मिलावट और खान-पान के अन्य सामग्री में मिलावट बड़े प