जिंदगी जिओ पर संजीदगी से...

 जिंदगी जिओ पर संजीदगी से…….


आजकल हम सब देखते हैं कि ज्यादातर लोगों में उत्साह और जोश की कमी दिखाई देती है। जिंदगी को लेकर काफी चिंतित, हताश, निराश और नकारात्मकता से भरे हुए होते हैं। ऐसे लोंगों में जीवन इच्छा की कमी सिर्फ जीवन में एक दो बार मिली असफलता के कारण आ जाती है। फिर ये हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाते हैं। जहाँ एक तरफ दूसरे लोग जो जीवन के प्रति कुछ अलग नजरिया रखते हैं वे आपाधापी में लगे होते हैं। उनका मानना होता है कि जिंदगी तो सिर्फ चलने का नाम है। इसलिए चलते रहो सुबह शाम। अकेलेपन का जीवन जीने वाले लोंगों से आग्रह है कि वे भी जीवन के प्रति अपनी नजरिया बदलें और ये मान लें कि जीवन एक संघर्ष है और उन्हें सतत संघर्ष करना है। ये संघर्ष आजीवन करना है तबतक करना है जबतक मंजिल नहीं मिल जाती है। कहने का तात्पर्य यह है कि जिंदगी को जिओ तो संजीदगी के साथ….।

'जिंदगी जिओ तो जिंदादिली के साथ,

मुर्दा दिल क्या खाक जिया करते हैं...।'

सच में जिंदादिली के साथ जिंदगी को जीने का मजा ही कुछ और है। यहाँ जिंदादिली का मतलब जोश, उमंग, उत्साह, मनोकामना, आशावादिता और हर रोज देखे गए नये सपनों के साथ है। जबकि मुर्दादिल का तात्पर्य उन लोंगों से है जो घोर निराशा, अवसाद और नकारात्मकता से भरे हुए हैं जिनके जीवन से उत्साह और अरमान नदारद हो चुका है। जो अपने आपको लोंगों से अलग कर लिए हैं और अकेलेपन का जीवन जी रहे हैं। आओ इस बात को हम और गहराई से समझते हैं। प्रायः हम देखते हैं कि फिल्मों में नायक-नायिका अर्थात अभिनेता और अभिनेत्री होते हैं। कई बार फ़िल्म में बताया जाता है कि दोनों में से कोई एक किसी गम्भीर बीमारी से ग्रस्त होता है, जो लाइलाज होता है। चिकित्सक बता देता है कि बस अब कुछ चंद दिनों के मेहमान हैं। ऐसे में जिंदगी के प्रति सहसा नजरिया बदल जाता है और उस बीमार व्यक्ति की सारी इच्छाएँ, अरमान और सपनें पूरी करने की कोशिश की जाती है। सोचो जरा हमें पता चलता है कि बस यह जीवन अब अल्पकालिक है तो जिंदगी को कितनी संजीदगी से ले लेते हैं और खुलकर जीते हैं। इतना तो मैं दावे के साथ कहता हूँ कि जिसने भी जिंदगी को करीब से देखा है या फिर जीवन के रहस्य को भलीभाँति समझ लिया है वह हमेशा अपना जीवन खुलकर संजीदगी के साथ जीता है।

'गर जिंदा भी रहे तो यह जवानी फिर कहाँ…

यदि जवानी भी रही तो वो रवानी फिर कहाँ..।'

जिंदगी हमेशा एक जैसी नहीं होती है। जिस तरह जन्म से लेकर मृत्यु तक का सफर ही जीवन है। इस दौरान शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था का आगमन होता है। यही एक सुनिश्चित क्रम है। ये बात और है कि इस मृत्युलोक में जीवन में भी अनिश्चितता है जो कि अपने आप में अपवाद है और जो अपवाद है उसे दरकिनार कर देते हैं। हम बात कर रहे थे जिंदगी की कि हर काल और अवस्था की अपनी एक खूबसूरती है और उस खूबसूरती को महससू करना ही जिंदगी की संजीदगी है। वह पड़ाव या अवस्था पार करने के बाद आप उसे दुबारा नहीं जी पाओगे फिर वह यादों में ही कैद रह जाता है ठीक फोटोफ्रेम की तस्वीर की तरह। सोचो जरा आज को खोने या व्यर्थ गंवाने के मतलब क्या है…? यदि हम कल जिंदा भी रहते हैं तो स्वाभाविक रूप से पहले वाली जवानी नहीं होगी और यदि जवानी भी रही तो उसमें पूर्ववत रवानी अर्थात जोश, उमंग, उत्साह नहीं होगा। जो भी जीना है वर्तमान में जीना है। आज में जीना है। आज ही वर्तमान है और सही मायने में यही हमारा है जिस पर थोड़ा अधिकार है। इसलिए इसे खुलकर संजीदगी के साथ जिओ।

'कहते हैं अगले पल का ठिकाना नहीं है,

पर सदियों की तैयारी किए बैठे हैं….।'

पहले ही बताया कि जीवन अनिश्चितता से भरा हुआ है। अगले पल में क्या होगा इसका कोई ठिकाना नहीं है पर मनुष्य सदियों की तैयारी करता है। वो भी वर्तमान में कष्ट झेलकर, पेट काटकर, अरमानों को मचलकर और इच्छाओं का शमन कर के। क्या ये उचित है….? आप पलभर के लिए अपने सीनें पर हाथ रखकरअपने आप से पूछिए। बेशक जवाब मिलेगा कि कितने बड़े मूर्ख और बेवकूफ हैं।

'सच हम नहीं सच तुम नहीं,

सच है सतत संघर्ष ही….।'

बिल्कुल सत्य बात कही गई है कि लगातार संघर्ष करते रहना ही जीवन की सच्चाई है। बेशक जीवन में किसी को कम संघर्ष करना पड़ता है तो किसी को अधिक। पर संघर्ष के बाद ही मिली सफलता में परमसुख और आनंद की प्राप्ति होती है। जो दुःख नहीं झेलते हैं उन्हें सुख की परिभाषा या आनंद की अनुभूति हो ही नहीं सकती है। फिलहाल मनुष्य के हाथ में जो है उसे करना चाहिए और उसी के साथ जिंदगी को संजीदगी से जीना चाहिए। 

अंत में यही कहूँगा कि ➖

'जिंदगी है जीने का नाम, इसे जिओ सुबह -शाम…

हरे कृष्णा हरे राम…... हरे कृष्णा हरे राम…….।'


➖प्रा. अशोक सिंह….✒️

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