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जुलाई, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

तनाव मुक्त जीवन ही श्रेष्ठ है....

तनाव मुक्त जीवन ही श्रेष्ठ है…… आए दिन हमें लोंगों की शिकायतें सुनने को मिलती है….... लोग प्रायः दुःखी होते हैं। वे उन चीजों के लिए दुःखी होते हैं जो कभी उनकी थी ही नहीं या यूँ कहें कि जिस पर उसका अधिकार नहीं है, जो उसके वश में नहीं है। कहने का मतलब यह है कि मनुष्य की आवश्यकतायें असीम हैं….… क्योंकि उसका मन पर नियंत्रण नहीं है। जबकि इस दुनिया में जीते जी हमारा मन ही जीवन की सफलता को तय करता है। इसीलिए तो कहा जाता है कि मन के हारे हार है और मन के जीते जीत। जो इंसान अपने मन को नियंत्रित कर लेता है, उसकी आवश्यकताएँ सिमट जाती हैं। जो मन को नियंत्रित नहीं कर पाता है उसकी अवस्था ठीक इसके विपरीत होती है। उसकी आवश्यकताएँ निरंतर जारी रहती हैं अर्थात कभी पूरी नहीं होती है। कहने का तात्पर्य यह है कि मन को वश में कर लेने से ही सुखद अनुभूति होती है। किसी भी तरह का तनाव नहीं रहता है। उदाहरण के लिए कोई इंसान बेहद गरीबी में भी पूरा जीवन स्वस्थ शरीर के साथ गहरे आनंद में डूबे रहकर गुजार लेता है, तो गरीबी बुरी नहीं कहलाएगी। दरअसल उसने अपने मन को नियंत्रित कर लिया और सीमित संसाधनों से ही संतुष्ट रहा और जी

क्या मृत्यु से डरना चाहिए...?

क्या मृत्यु से डरना चाहिए……? अगर हम बात मृत्यु की करते हैं तो अनायास आँखों के सामने किसी देखे हुए मृतक व्यक्ति के शव का चित्र उभरकर आ जाता है। मन भी न चाहते हुए शोकाकुल हो उठता है। आखिर ऐसी मनस्थिति के पीछे क्या वजह हो सकती है…? जबकि आज के परिवेश में घर के अंदर भी हमें दिन में ही ऐसी लाशों को देखने की आदत सी हो गई है। दूरदर्शन व अन्य चैनलों पर प्रसारित होने वाले धारावाहिकों के माध्यम से आपको मृत्यु की घटनाएँ आये दिन देखने को मिलती है। एक प्रकार से इंसान को सहज हो जाना चाहिए पर ऐसा नहीं है। वह तटस्थ नहीं रह पाता है, वह अपने आवेगों को नियंत्रित नहीं कर पाता है। जबकि इस सृष्टि का नियम है कि जिसने भी जन्म लिया है उसे मरना है….. यही अटल सत्य है। जीवन का शाश्वत नियम है। इंसान भी इस तथ्य से बखूबी वाकिफ है पर खुद को समझा पाना मुश्किल होता है। सोचिए जरा…. जन्म और मृत्यु के बिना जीवन संभव है…. अरे भाई जन्म और मृत्यु के बीच का सफर ही तो जीवन कहलाता है। हाँ ये हुई न बात…. जीवन में जन्म - मृत्यु ही है…. यही तो मृत्युलोक है।  आइए जीवन को समझने का प्रयास करते हैं। पर जीवन को समझने के लिए सबसे पहले हम

क्या कहेंगें आप...?

          क्या कहेंगें आप...? हम सभी जानते हैं कि प्रकृति परिवर्तनशील है। अनिश्चितता ही निश्चित, अटल सत्य और शाश्वत है बाकी सब मिथ्या है। बिल्कुल सच है, हमें यही बताया जाता है हमनें आजतक यही सीखा है। तो मानव जीवन का परिवर्तनशील होना सहज और लाज़मी है। जीवन प्रकृति से अछूता कैसे रह सकता है…? जीवन भी परिवर्तनशील है। यही तथ्य ग्राह्य है।  जीवन भी मानव को लगातार सही मायनों में मानव बनाने की दिशा में प्रयासरत है। पर जीवन सबक लेने में कोताही कर रहा है। दरअसल मानव इसके लिए पूरी तरह तैयार नहीं है। वह दुविधाओं में फंसा हुआ है। जबकि जीवन हमें हजार-हजार तरीकों से सबक सिखाने की कोशिश करता है, बस हमारा ही उस तरफ ध्यान नहीं जाता है। जरा गौर कीजिए क्या बचपन से लेकर आजतक आप, जो भी अवस्था हो आपकी क्या वैसे ही हैं..? बिलकुल नहीं। आपका बौद्धिक और शारिरिक विकास हुआ है। यह सत्य है और स्वीकार्य भी है। इसमें संदेह नहीं है। समय के साथ मनुष्य का अनुभव विकसित होता है। चलिए हम इसे समझने की कोशिश करते हैं। दुनियाभर में मशहूर होता कोई शख्स अचानक किसी दुर्घटना का शिकार हो जाता है, दूसरा कोई लाइलाज बीमारी की चपेट में

बप्पा को लाना हमारी जिम्मेदारी है....

बप्पा को लाना हमारी जिम्मेदारी है... अबकी बरस तो कोरोना महामारी है उत्सव मनाना तो हमारी लाचारी है रस्में निभाना तो हमारी वफादारी है बप्पा को लाना तो हमारी जिम्मेदारी है। अबकी बरस हम बप्पा को भी लायेंगें सादगी से हम सब उत्सव भी मनायेंगें सामाजिक दूरियाँ हम सब अपनायेंगें मास्क सेनिटाइजर प्रयोग में लायेंगें। दूर दूर बैठकर हम बप्पा को मनायेंगें भजन कीर्तन भाव सब बप्पा मन भायेंगें आरती व धूप से बप्पा रीझ जायेंगें कोरोना महामारी से बप्पा ही बचायेंगें। हमारी अराधना से बप्पा मुस्कुरायेंगें ढोल ताशे गुलाल बिना उत्सव मनायेंगें हर्षोल्लास के साथ हर रस्म निभायेंगें बप्पा मोदक खायेंगें कोरोना से बचायेंगें। अपनी करताल से हम बप्पा को झुमायेंगें घरगुती पकवान हम नैवेद्य में चढ़ायेंगें पास बैठकर के हम उनको ही निहारेंगें भाव के हैं भूखे बप्पा हम भाव ही ख़िलायेंगें। अबकी बरस हो…., हाँ हाँ अबकी बरस विघ्नहर्ता बप्पा मोरे..बिघ्न को हटायेंगें अष्टविनायक बप्पा मोरे हर काम सवारेंगें विघ्नविनाशक बप्पा कोरोना को मिटायेंगें सिद्धिविनायक बप्पा सबको सिद्धि दिलायेंगें। ➖ अशोक..🖋️ #गणेशोत्सव2020

कोरोना देव की कृपा

 कोरोना देव की कृपा जीवन का नाहीं कौनों ठिकाना मरै के चाहिय बस कौनों बहाना  बुढ़न ठेलन का बाटै आना जाना जवनकेउ का नाहीं बाटै ठिकाना रोग ब्याधि का बाटै ताना बाना फैलल बा भाई वायरस कोरोना झटके पटके में होला रोना धोना कितना मरि गयेन बिना कोरोना मेहर माई बाप के बाटै भाई रोना अस्पताल वाले पैसा लूटत बाना भागल भागल बीरन घर पहुंचना पीछा करत करत काल पहुँचिगा मैदान खातिर ताले गइल लवंडा काल डस लिहेन बनी सरकंडा विधिना लिखी दिहेन छठि के रात टारे ना टरी उ केतनो करा प्रयास चार महीना बीति गा अनायास नौकरी धंधा होइ गा सत्यानाश बचत कमाई का होइगा बंटाधार जियय के नाहीं बाटै कौनों आधार देखि देखि लोगन के बा बुरा हाल भगवानौ त आजकल बाहेंन बेहाल भक्त भी नाहीं पूछत बाहेंन हालचाल मोदी योगी ओनके कईले बाटेन कैद चीन पाक सरहद पर बाटेन मुश्तैद मौकापरस्त चीन बा लगाए घात तबै त सुधरे जब खाये उ मात मात खाति देख पाक लागि काँपै मुँह के आइके कलेजा लागि झाँकै बाह रे कोरोना देव लीला अपरम्पार कई दिहा दुनिया का पूरा बंटाधार। ➖ अशोक सिंह

कोरोना महामारी और बकरीद पर्व

 कोरोना महामारी और बकरीद पर्व पिछले चार महीनें से कोरोना वायरस का प्रकोप चारो ओर फैला हुआ है। कोरोना महामारी के कारण लोंगों का जीना मुहाल है। ऐसे में मुसलमान भाइयों के बकरीद पर्व का आगमन हो रहा है। पूरा विश्व आज कोरोना से त्राहि त्राहि कर रहा है तो ऐसे में बकरीद का पर्व इससे अछूता कैसे रह सकता है। कोरोना के चलते विश्वव्यापी मंदी आई है। इस आर्थिक सुस्ती से कुर्बानी के बकरों का बाजार भी ठंडा पड़ा है। बिक्री न होने से व्यापारियों में भी उत्साह नहीं है। शारीरिक दूरी कायम रखने के प्रतिबंध के चलते बकरा मंडियों में सन्नाटा पसरा है। भले ही कुछ व्यापारी बकरों के साथ मुस्लिम इलाकों की गलियों में घूम रहे हैं कि शायद उनके बकरे बिक जायें लेकिन उन्हें खरीदार कम ही मिल रहे हैं। कोरोना के चलते इस बार कुर्बानी के लिए बकरों का बाजार भी नहीं लगेगा। स्लाटर हाउस पर रोक के चलते लोग अपने घरों में ही कुर्बानी की रस्म अदा करेंगे। ऐसे में बकरों का बाजार इस बार काफी ठंडा रहेगा। वर्तमान परिस्थितियों को मद्देनजर रखते हुए प्रशासन ने पहले ही बकरीद पर्व को लेकर दिशानिर्देश जारी कर दिया है। बेशक इन निर्देशों से कुछ लो

अजी ये क्या हुआ....?

अजी ये क्या हुआ…? होली रास नहीं आया कोरोना काल जो आया महामारी साथ वो लाया अपना भी हुआ पराया बीपी धक धक धड़काया छींक जो जोर से आया… तापमान तन का बढ़ाया ऐंठन बदन में लाया थरथर काँपे पूरी काया छूटे लोभ मोह माया दुश्मन लागे पूरा भाया पूरा विश्व थरथराया…… नाम दिया महामारी जिससे डरे दुनिया सारी चीन की चाल सभी पे भारी बौखलाई दुनिया है सारी वुहान बना कोविड का दाता जोड़ा इससे दुनिया का नाता फ्रांस अमेरिका इटली टूटा संसाधन पर जग को लूटा वैक्सीन की करे जोहाई हर देशों ने गुहार लगाई तालेबंदी में बीता चौमासा फेल हो गया इसरो नासा फार्मा भी दे रहा दुहाई वैक्सीन पर है दांव लगाई बहुरूपिया जो निकला कोरोना इसी बात का बस है रोना विज्ञान साबित हो रहा है बौना जीवन साथी बन गया कोरोना माह बीते बीत गया पखवारा दाल रोटी से अब होय गुजारा काम धंधा बंद किया सरकार कमाई के नाहीं कौनों आसार…? राशन का नाहीं कौनों जुगाड़…? दिन कैसे बीते, लागे है पहाड़…? अजी काढ़ा संग जीवन बीता जाय घर ही में कैद बने असहाय अशोका अब तो करो उपाय…. ➖प्रा. अशोक सिंह ☎️ 9867889171

कर्म करते जाओ फल की चिंता मत करो….

कर्म करते जाओ फल की चिंता मत करो…. हम अपने आस - पास अक्सर लोंगों को बोलते हुए सुनते हैं, हर कोई आध्यात्मिक अंदाज में संदेश देते रहता है -  'कर्म करते जाओ फल की चिंता मत करो…...।' वस्तुतः ठीक भी है। एक विचार यह है कि फल की चिंता कर्म करने से पहले करना कितना उचित है अर्थात निस्वार्थ भाव से कर्म को बखूबी अंजाम देना चाहिए। उसके परिणाम की चिंता नहीं करना चाहिए। कर्म करना हमारे हाथ में है और फल देना ईश्वर के हाथ में है। दूसरा विचार यह है कि कोई भी कार्य करने से पहले सोच - विचार करना आवश्यक है। जिससे कि कार्य को अच्छी तरह से पूरा किया जा सके। भागवद् गीता में भी कहा गया है ➖ "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन । मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥" कहने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य का कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए फल की दृष्टि से कर्म नहीं करना चाहिए और न ही ऐसा सोचना चाहिए कि फल की आशा के बिना कर्म क्यों करूं। इसमें चार तत्त्व  हैं – १. कर्म करना तेरे हाथ में है। २. कर्म का फल किसी और के हाथ में है। ३. कर्म करते समय फल की इच्छा मत कर। ४. फल

हरियाली रहेगी तो खुशीहाली रहेगी

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"हरियाली रहेगी तो खुशीहाली रहेगी " यह फूल इस सृष्टि का अनमोल उपहार है। कितना सुंदर, मनमोहक और आकर्षक है। वास्तव में प्रकृति की दी हुई हर चीज सुंदर होती है। जिसमें फूलों की तो बात ही कुछ और होती है। रंग विरंगे फूल अपने रंग रूप और सुगंध को  फैला देते हैं। जिससे प्रकृति के रूप सौंदर्य में और अधिक निखार आ जाता है। जबकि इन फूलों का जीवन सिर्फ चंद दिनों का होता है। इन चंद दिनों में खिलना, मुस्कुराना, रंग रूप बिखेरना और फिर मुरझा जाना। मुरझाना अर्थात मिट जाना, उसके जीवन का अंत होना। पर मुरझाने से पहले निस्वार्थ भाव से रंग रूप व सुगंध को बिखेरकर जीवन को सार्थक बना लेता है।  प्रकृति की हर चीज हमें जीवन की सीख और प्रेरणा देती है। सूर्य और चंद्रमा को ही ले लो। समय के साथ उदय होना और समय के साथ अस्त होना, जग को निस्वार्थ भाव से रोशनी देना, अनुशासन व नियम की सीख देना। नदी और वृक्ष को ही ले लो। नदी के जल का सेवन दूसरे प्राणी करते हैं और अपनी तृष्णा मिटाते हैं। वृक्ष निस्वार्थ भाव से फल, फूल, पत्ते और लकड़ी देकर परोपकार का कार्य करता है। पशु पक्षी उसकी छाया में सुस्ताते हैं। प्राणदायिनी

सावन की कजरी...

सावन की कजरी... सावन आइ गइल मन भावन हवा चलै पुरवइया ना, करिया बदरा घिर घिर आवै गरज गरज डेरवावै ना, चकमक चकमक बिजली चमकै जियरा हरसावै ना, रिमझिम रिमझिम पनिया बरसै मनवा के सरसावै ना, उमड़ि घुमड़ि के बरसै लागेन पानी पानी कइलेन ना, अरे... सखिया सावन झूला झूलैं  गहि गहि पतेंग मारै ना, कजरी गावैं झूमैं नाचैं  मिलिजुलि खुशियाँ खूबै मनावैं ना, सारी सखियाँ सोमवार भूखैं सजि धजि शिव के मनावैं ना, हाथ जोड़ि के करैं अरजिया कोरोना से देव बचावा ना, हर-हर बम-बम के राग अलापैं औढ़रदानी के मनावैं ना। #सावन #कजरी ➖ अशोक.

मानव जीवन क्या है...

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मानव जीवन क्या है..... जीवन क्या है..? या मृत्यु क्या है..? क्या कभी आपने इसे समझने की चेष्टा की है..? नहीं, जरूरत ही नहीं पड़ी। मनुष्य ऐसा ही है.. तो क्या सोच गलत है...जी बिल्कुल नहीं, ये तो मनुष्यगत स्वभाव है। जरा उनके बारे में सोचिए जिन्होंने हमें ज्ञान की बातें सिखाई। यदि उन्होंने चिंतन न किया होता तो हमें उनके अनुभवों का ज्ञान कैसे मिलता..? एक बात तो निश्चित है कि चिंतन मनन करना भी सबके बस की बात नहीं है। चिंतन वही कर सकता है जिसका आध्यात्मिक विकास हुआ है। जिन्हें अध्यात्म का ज्ञान है। अध्यात्म से जुड़ते ही मनुष्य का सर्वांगीण विकास हो जाता है। उसके अंदर की सभी विसंगतियों का शमन हो जाता है। उसमें उदारता आ जाती है। वह स्वकेन्द्रित न होकर परमार्थ की ओर अग्रसर हो जाता है। उसे समझ में आजाता है कि सही मायने में ये 'जीवन और मृत्यु' क्या है? मानव शरीर के बारे में संत तुलसीदास जी ने कहा है ➖  "बड़े भाग मानुष तन पावा, सुर दुर्लभ सद् ग्रन्थन्हि गावा। साधन् धाम मोक्ष कर द्वारा, पाई न जेहिं परलोक सँवारा।।" अर्थात मनुष्य का शरीर बड़े ही भाग्य और जप - तप से प्राप्त होता है क्योंकि

हिंदी की नई पाठ्यपुस्तक युवकभारती और बारहवीं के छात्र

 हिंदी की नई पाठ्यपुस्तक युवकभारती और बारहवीं के छात्र हालही में जहाँ एकतरफ पूरा विश्व कोरोना महामारी अर्थात कोविड-19 से त्रस्त है वहीं महाराष्ट्र राज्य माध्यमिक व उच्च माध्यमिक मंडल पुणे द्वारा बारहवीं कक्षा के लिए हिंदी विषय के पाठ्यक्रम में नई पाठ्यपुस्तक हिंदी युवक भारती प्रकाशित की गई है। ऐसे जटिल समय में नई पाठ्यपुस्तक की पीडीएफ फाइल उपलब्ध कराकर बालभारती ने अत्यंत महत्वपूर्ण व सराहनीय कार्य किया है। नये पाठ्यक्रम में मूलभूत परिवर्तन किया गया है। पुरानी परिपाटी को छोड़कर आज के बदलते परिवेश को लक्षित करके पाठ्यपुस्तक निर्मिति समिति ने बहुत ही सूझबूझ व चतुराई का परिचय देते हुए पाठों का संकलन व समावेश किया है। जिसके अध्ययन व अध्यापन से प्राध्यापकों व छात्रों का बहुआयामी व्यक्तित्व निखरेगा। बेशक इसे आत्मसात करके उनका बहुमुखी विकास संभव हो पाएगा। पर इसके लिए सभी तरह के मूल्यों की निर्मिति व संवर्धन सुनिश्चित करना होगा।   अब सवाल यह उठता है कि क्या प्राध्यापक और छात्र लेखन कौशल के बदले स्वरूप के रूप में शामिल किए गए व्यावहारिक हिंदी के साथ न्याय कर पायेंगे? क्या व्याकरण के अंतर्गत शामिल

हिंदी के प्रति बढ़ती अरुचि

हिंदी भाषी प्रदेश में हिंदी के प्रति बढ़ती अरुचि… हाँ जी, बात हो रही है उत्तरप्रदेश की। आप भी चौंक उठे होंगें। जिस प्रदेश की मातृभाषा हिंदी है, जहाँ आम जनमानस भी हिंदी, अवधी, बुंदेली, ब्रजभाषा और भोजपुरी बोलते हैं। जिनकी जन्मजात बोली हिंदी या हिंदी का ही स्वरूप रहा है। उन्हीं लोंगों में हिंदी भाषा व विषय के प्रति अरुचि पैदा होना दुर्भाग्य की बात है। मनुष्य को अपनी भाषा और जन्मभूमि से बहुत लगाव होता है। उसपर उनका जन्मसिद्ध अधिकार होता है। उसमें उन्हें महारथ हासिल होती है। पर वर्तमान समय में हालात कुछ और हैं। एक हिंदी भाषी प्रांत में सर्वाधिक छात्र हिंदी विषय में अनुत्तीर्ण होंगें इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। पर अब ये कल्पना की बातें नहीं है आज हकीकत बनकर सामने खड़ी है। आज मनीषियों व बुद्धिजीवियों के बीच चर्चा का अहम विषय बना हुआ है।  आप सोचिए जरा….हाल ही में उत्तर प्रदेश में कक्षा बारहवीं का परीक्षा परिणाम घोषित हुआ और जिसमें लगभग 2 लाख 70 हजार विद्यार्थी हिंदी विषय में अनुत्तीर्ण हुए हैं। जबकि अंग्रेजी एक विदेशी भाषा है जिसे कठिन समझ जाता था आज लोंगों की सोच गलत साबित हो रही है। अं

कोविड-19 और ऑनलाइन शिक्षा

कोविड-19 और ऑनलाइन शिक्षा COVID-19 महामारी के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिये लागू किये गए लॉकडाउन के कारण नौकरी, धंधा, कारोबार, व्यापार और व्यवसाय के साथ - साथ स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय की शिक्षा प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो रही है। विशेष रूप से व्यावसायिक, चिकित्सकीय, तकनीकी सभी प्रभावित हुए हैं। अभी तो छात्रों की परीक्षाओं पर भी अनिश्चितता की तलवार लटक ही रही थी कि उनको पिछले प्रदर्शन व उपलब्धि के आधार पर प्रोन्नति करने का निर्णय समुचित जान पड़ा।  कोविड-19 की समस्या विश्वव्यापी है। लोग अपने व्यवसाय, रोजी रोटी को छोड़कर बस एक ही चिंता में हैं कि किसी तरह इस महामारी (मायावी दानव) से बचा जाए। देखिए मायावी दानव कहने का तात्पर्य यूँ है कि इसका स्वरूप दिन प्रति दिन बदलता जा रहा है, जो हमारी समझ से परे है। उसे वैज्ञानिक और चिकित्सक ही समझे। बात ये है कि जहाँ राजनेता से लेकर प्रशासन राहत पैकेज की तरफ ध्यान केंद्रित किये हुए हैं तो कुछ लोगों ने प्रवासी श्रमिकों की भी सुधि ले लिए। हालांकि काफी जद्दोजहद के बाद श्रमिकों को गन्तव्य या मूल निवास तक जाने की छूट मिली। फिर भी अफरा - तफरी मची हुई है। च

भारत देश की ग्रामीण समस्याएँ

'भारत देश की ग्रामीण समस्याएँ ' भारत गांवों का देश है। आज भी ज्यादातर लोग गाँव में ही रहते हैं। हमारी संस्कृति, संस्कार और परंपरा दरअसल गाँव की ही देन है। अमन, चैन, सुख, शांति और निश्चिंतता भरी सुकून के जीवन की झलक ग्रामीण जीवन में ही दिखता है। पर ग्रामीण इलाकों की अनेक समस्याएँ भी हैं जिसके कारण लोग शहर की ओर पलायन करते हैं। जिसमें निर्धनता, उच्च शिक्षा  का अभाव, अस्पताल व चिकित्सा का अभाव, रोजगार का अभाव, सड़क - बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव आदि मुख्य समस्याएँ हैं। ⏺️निर्धनता :-  निर्धनता ग्रामीण इलाकों की मुख्य समस्या है। निर्धनता के कारण लोग अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर पाते हैं। आज भी हमारे देश में लगभग करोड़ों लोग निर्धन हैं अर्थात गरीबी रेखा के नीचे हैं और जीवन निर्वाह करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वे ग्रामीण क्षेत्रों में  ही मजदूरी करने के लिए विवश हैं। उन्हें उचित पारिश्रमिक भी नहीं मिलती है। उनका शोषण होता है।     ⏺️उच्च शिक्षा का अभाव :- ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च शिक्षा देने वाले संस्थानों की कमी है। जिसके कारण ज्यादातर लोग उच्च शिक्षा से वंचित र

मुंबई की पहचान

'मुंबई शहर की पहचान' मेरे शहर का नाम मुंबई है। मुंबई शहर एक महानगर है। जो महाराष्ट्र राज्य की राजधानी है और भारत देश की आर्थिक राजधानी है। मुंबई शहर भारत के पश्चिमी तट पर अरब सागर के किनारे द्वीप पर स्थित है। मुंबई विश्वविख्यात शहर है और भारत देश की शान है। मुंबई शहर का नाम मुंबा देवी के नाम से लिया गया है , कोली जनजाति की कुलदेवी का नाम मुंबादेवी है। पहले इस शहर को बॉम्बे और बंबई कहते थे बाद में मुंबई कहा जाने लगा। मुंबई का कुल क्षेत्रफल लगभग 603 वर्ग किमी है। मुंबई महानगर की अनुमानित जनसंख्या लगभग साढ़े तीन करोड़ है। मुंबई को सपनों का शहर भी कहा जाता हैI मुंबई शहर के बारे में एक कहावत है कि 'मुंबई कभी सोती नहीं है'। यहाँ रात होते ही पूरा शहर रोशनी से जगमगा उठती है। दरअसल मुंबई की खूबसूरती रात में ही देखने को मिलती है। इसका असर लोंगों पर जादू से होता है लोग देश के कोने-कोने से खींचे चले आते हैं। मुंबई ने सभी को शरण दिया है। चाहे अमीर हो या गरीब सभी का मसीहा मुंबई है। मुंबई शिक्षा और संस्कृति का केंद्र भी है। यहाँ मुंबई विश्वविद्यालय, एसएनडीटी महिला विश्वविद्यालय समेत कई