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नवंबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सवेरे - सवेरे उठकर देखा

  सवेरे - सवेरे उठकर देखा सुनहरी किरण छिटके देखा चिड़िया अभी-अभी थी आई नव सृष्टि की गीत सुनाई। मन भी उमंग जोश से भरा हर पल लगता था सुनहरा सुगंधित संगीतमय वातावरण अंधकार के पट का अनावरण। मैंने किरणों से कहा, मुझे थोड़ी सी ऊर्जा दोगी चिड़िया से कहा, गाने का तजुर्बा दोगी नव किसलय दल से कहा, जीवन स्नेह से भर दोगी फूलों की खुशबू से कहा, हर्षोल्लास से भर दोगी...! हाँ - हाँ की प्रतिध्वनि, जैसे हाँ - हाँ भर दूँगी...! स्वर अचकाया था भावुकता से लड़खड़ाया था..! अनुभव से परे का व्यवहार जीवन प्रकृति का प्यार। जो भाग्यशाली कर्मवीर हो त्याग नींद जल्दी उठते हों...! बेफिक्र हो दुनिया में जीते हों वे ही जीवन में आनंदरस पीते हैं अनकहा व अनसुनी स्वर सुनाई दी मुझे इसकी है परम आवश्यकता। सवेरे की शीतल हवा जैसे हो अमरता की दवा घासों की हरियाली जैसे जीवन की खुशहाली। ऐसे ही मिलती है मुट्ठी भर जीने की आस भरता गजब का उल्लास अँधियारा छट मिलता उजास। मैं धन्य-धन्य हो उठा बंधुवर कृतज्ञ हो उठता हूँ आज पा ऊर्जा, तजुर्बा, स्नेह व ख़ुशीहाली बिन माँगे मिलती हैं चीजें निराली सुकून व असीम श

गिरनार की चढ़ाई (संस्मरण)

  गिरनार की चढ़ाई (संस्मरण) समय-समय की बात होती है। कभी हम भी गिरनार की चढ़ाई को साधारण समझते थे पर आज तो सोच के ही पसीना छूटने लगता है। आज से आठ वर्ष पूर्व एक विशेष राष्ट्रीय एकता शिविर (Special NIC Camp) में महाराष्ट्र डायरेक्टरेट का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला। पूरे बारह दिन का शिविर था। मेरे साथ दस SD कैडेट्स और सात SW कैडेट्स ने हिस्सा लिया था। जनवरी का महीना था, हल्का गुलाबी ठंड पड़ रही थी। वैसे वहाँ पर भी ठंडी में भी तापमान लगभग 17℃ ही था। इसलिए कुछ विशेष परेशानी नहीं हुई। इस तरह के शिविरों में सांस्कृतिक कार्यक्रमों व दार्शनिक स्थलों के भ्रमण पर ही विशेष जोर दिया जाता है। तीसरे दिन से ही प्रतियोगिताएँ शुरू हो गई थी। पूरे भारत से कुल सत्रह डायरेक्टरेट ने हिस्सा लिया था। हमारा बेस कैम्प जूनागढ़ में था। इसके आस-पास के इलाके हमने भ्रमण के लिए शामिल किए थे। जिसमें सोमनाथ मंदिर, द्वारिकापुरी, जूनागढ़ किला, गिरनार की ट्रेकिंग और गिरि सफारी मुख्य रूप से शामिल था। वैसे तो ऐसे शिविर मजेदार होते हैं और यादगार बन जाते हैं। गिरनार की चढ़ाई के एकदिन पहले डिनर के समय मेस में केरला की जीसीआई न

भारत का स्विट्जरलैंड

  भारत का स्विट्जरलैंड एक लंबे अरसे के बाद मातारानी के यहाँ से बुलावा आ ही गया। हमनें मातारानी वैष्णोदेवी का दर्शन करने के पश्चात  दूसरे दिन हमनें कटरा से ही अगले सात दिन के लिए ट्रैवलर फोर्स रिजर्व कर लिया था। कटरा से सुबह हम सब डलहौजी के लिए रवाना हुए थे। नवंबर माह का अंतिम सप्ताह चल रहा था। सैलानियों का जबरदस्त जमावड़ा था। जम्मू माधोपुर वाया पठानकोट होते हुए हम लोग शाम सात बजे के लगभग डलहौजी पहुँचे थे। सफर के दौरान सिर्फ नाश्ता, दोपहर के भोजन के लिए रुके थे। हाँ, और एक जगह चिंचवटी माता के मंदिर का दर्शन करने के लिए रुके थे, नहीं तो पूरे बारह घंटे का सफर। उफ! कितना घुमावदार रास्ता। हम कुल मिलाकर नौ लोग थे। जिसमें से दो लोंगों को छोड़कर बाकी सभी को उल्टियाँ होने लगी थी। डलहौजी में सुभाष चौक के पास होटेल बुक किया गया था पर सुविधाजनक न होने के कारण हमनें वहाँ से खज्जियार के लिए कूच कर दिया। लक्कड़मंडी होते हुए अँधेरी रात में घुमावदार-चक्करदार सड़क से होते हुए रात साढ़े दस बजे खज्जियार पहुँचे थे। वहीं एक होटेल में मुकाम किया गया। तीन कमरे में हम नौ लोग ठहरे थे। वैसे देखा जाए तो पूरे होटेल म

अनमोल वचन ➖ 5

  अनमोल वचन ➖ 5 दीप से दीप की ज्योति जलाई, दिवाली की ये रीति निभाई एक कतार में रखि के सजाई, फिर सब कुशल क्षेम मनाई। पाँच दिनों का त्योहार अनोखा, भाऊबीज तक सजे झरोखा पकवानों का खुशबू हो चोखा, हर कोई रखता है लेखा-जोखा। धनतेरस की बात निराली, करते हैं सब अपनी जेबें खाली कोई खरीदे सोना-चाँदी तो, कोई बर्तन शुभ दिवाली। दीप जलाकर करें हैं निवेदन, अंधकार मिटि जाए घन स्वास्थ्य समृद्धि का लाभ मिले, बना रहे सुखमय जीवन। नरकचतुर्दशी का दीप जलाकर, यम की करें सेवकाई अकाल काल से छुटकारा पाकर, फिरि जग की करे भलाई। लक्ष्मी पूजन और सिद्धि आराधना, अमावस्या की रात का सपना तन मन से जो करे पूजा अर्चना, धन दौलत और पाए खजाना। मंगलमय हो तुम्हरी दिवाली, यही है मेरी अरदावली धन आरोग्य संपदा मिली, सुधरे घर की हालत माली। जैसी सोच वैसी हो प्राप्ति, साधु संत या नर हो भोगी दुर्भावना त्याग ज्यों करे, संवरे जीवन बनि जाए योगी। मानव सम कोई जीव नहीं, हो जो परमारथ में लीन इहलोक परलोक सुधरि जाये, त्यागे स्वार्थ भावना हीन। दिवाली सम पर्व नहीं, अँधियारे को देत भगाय प्रकाश पर्व की रात यही, अँधियारा जात नशाय।

जननायक बिरसा मुंडा

  जननायक बिरसा मुंडा वै से तो हम हजारों समाजसुधारकों और स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते हैं, उनका जन्मदिन मनाते हैं। पर कुछ ऐसे होते हैं जो अल्पायु जीवनकाल में ही महान कार्य कर जाते हैं पर उनको स्मरण करना सिर्फ औपचारिकता रह जाती है या फिर क्षेत्रीय  स्तर पर ही उनकी पहचान सिमटकर रह जाती है। आज मैं बात कर रहा हूँ एक ऐसे समाजसुधारक  व स्वतंत्रता सेनानी का जो शहादत देकर अमर हो गया, जिसका नाम 'बिरसा मुंडा था। बिरसा मुंडा ने सिर्फ 25 वर्ष की अल्पायु जीवनकाल में अंग्रेजों के नाक में ऐसा दम कर दिया कि उन्होंने जेल में ही विष अर्थात जहर देकर बिरसा मुंडा की जीवनलीला समाप्त कर डाली। आओ हम सब बिरसा मुंडा के बारे में थोड़ा विस्तार से जानते हैं। बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर, 1875 को एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। पिता का नाम सुगना पूर्ति (मुंडा) और माता का नाम करमी पूर्ति (मुंडाइन) था। जो राँची के पास उलिहातू गाँव के थे। अपने समाज की दुर्दशा से आहत रहा। वे हमेशा शासकों द्वारा की गई सौतेलेपन व शोषण के व्यवहार व बुरी दशा पर सोचते रहते थे। इसी सिलसिले में 1 अक्टूबर 1894 को मात्र 19 वर्ष की आयु

आओ हम सब मिलकर ऐसा दीप जलाएँ

  आओ हम सब मिलकर ऐसा दीप जलाएँ आओ हम सब मिलकर ऐसा दीप जलाएँ दीप बनाने वालों के घर में भी दीये जलाएँ चीनी हो या विदेशी हो सबको ढेंगा दिखाएँ अपनों के घर में बुझे हुए चूल्हे फिर जलाएँ अपनें जो रूठे हैं उन्हें हम फिर से गले लगाएँ। आओ हम सब मिलकर ऐसा दीप जलाएँ जो इस जग में जगमग-जगमग जलता जाए जो अपनी आभा को इस जग में नित फैलाए जो जग में फैले अंधकार अज्ञान को नित्य मिटाए जो घृणा, द्वेष, ईर्ष्या, दलबंदी को दूर भगाए। आओ हम सब मिलकर ऐसा दीप जलाएँ सबके दिल का रूठा अँधियारा मिट जाए दीप ज्योति सी जग में अपना अनुराग बढ़ाए जनजन के मन में पनपे वैमनस्य भाव मिटाए आओ मिलकर निर्धन को भी पकवान खिलाएँ। आओ हम सब मिलकर ऐसा दीप जलाएँ जिसके लौ में धर्म-जाति का मतभेद मिटाएँ अमन-चैन सुख-शांति का चहु ओर संदेश फैलाएँ आओ मिलकर जग के कल्याण का गुहार लगाएँ आरोग्य-स्वास्थ्य सम्पदा को जग में फैलाएँ। आओ हम सब मिलकर ऐसा दीप जलाएँ  स्वार्थी नेताओं के चंगुल से हम देश बचाएँ मंदिर मस्जिद की चालों से गुमराह न होने पायें नस्लवाद के भस्मासुर से जनमानस को बचाएँ आओ मिलकर हम भारत को भारतवर्ष बनाएँ। ➖ अशोक सिंह

शिक्षक के व्यवसाय का महत्त्व

 शिक्षक के व्यवसाय का महत्त्व शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षक के व्यवसाय का ऐसा ही महत्त्व है जैसे कि ऑपरेशन करने के लिए किसी डॉक्टर अर्थात सर्जन का महत्त्व होता है। शिक्षक सिर्फ समाज ही नहीं बल्कि राष्ट्र की भी धूरी है। समाज व राष्ट्र सुधार और निर्माण के कार्य में उसकी महती भूमिका होती है। शिक्षक ही शिक्षा और शिष्य के उद्देश्य पूरे करते हैं। इसलिए किसी भी शिक्षा प्रणाली या शिक्षा योजना की सफलता या असफलता शिक्षा क्षेत्र के सूत्रधार शिक्षकों के रवैये और उनके व्यवहार पर निर्भर करती है। भारत सरकार द्वारा लागू की गई सभी शिक्षा नीतियों व योजनाओं में शिक्षकों की भूमिका के महत्त्व को स्वीकार किया गया है। जैसे कोठारी आयोग की रिपोर्ट (1964-66), शिक्षा नीति (1968), शिक्षा पर पंच वर्षीय योजना की रिपोर्ट और नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986) – में शिक्षक के व्यवसाय के महत्व की पहचान की गई है। इतना ही नहीं हालही में घोषित राष्ट्रीय शिक्षानीति -2020 में भी शिक्षकों की भूमिका और नवोपचार को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया गया है। किसी भी राष्ट्रीय शिक्षानीति या योजनाओं की सफलता शिक्षकों के सक्रिय क्रियान्वयन व कर्त

अनमोल वचन ➖ 4

 अनमोल वचन ➖ 4 दाता इतना रहमिए, कि पालन-पोषण होय पेट नित भरता रहे, अतिथि सेवा भी होय। दीनानाथ हैं अंतर्यामी, सहज करें व्यापार बिना तराजू के स्वामी, करें हैं सम व्यवहार। सबकुछ तेरा नाम प्रभु, इंसा की नहीं औकात पल में राजा तू बनाए, पल में रंक बनि जात। नाथ की लीला निराली,क्या स्वामी क्या माली बाग की रक्षा माली करे, जग की रक्षा स्वामी। एक कड़ी जुड़े दूजे से, नर नर से करे मिताई कृपा भये जगबंधन छूटे, जग की करे भलाई। भगवन के रंग रूप में, सब घट रही समाय जैसे फूलों के रंगरूप में,खुशबू लखि न जाय। ➖ अशोक सिंह 'अक्स' #अक्स

कोरोना का खतरा अभी टला नहीं है

 'कोरोना का खतरा अभी टला नहीं है' कोरोना का खतरा अभी टला नहीं है। जहाँ एक तरफ दावा किया जा रहा था कि अब कोरोना का खात्मा होने को आया है और सबकुछ खोल दिया गया, भले ही कुछ शर्तें रख दी गई। हमेशा सरकार प्रशासन सूचना जारी करने तक को अपनी जिम्मेदारी मानती है और उसीका निर्वहन करती है। जैसे सिगरेट के पैकेट पर लिख दिया जाता है कि 'सिगरेट का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।' ठीक इसी तरह से सभी प्रकार के तंबाखू, धूम्रपान सामग्री और मादक द्रव्यों पर लिख दिया जाता है और ये मान लेते हैं कि उनका कार्य व दायित्व पूर्ण हो गया। तो क्या सच में इतने से ही प्रशासन का दायित्व पूरा हो जाता है। जवाब होगा जी बिल्कुल नहीं…. दरअसल यह तो सूचना जारी करके जिम्मेदारियों से दूर भागना हुआ.. और नहीं तो क्या..? जबतक वैक्सीन नहीं आ जाती और व्यापक रूप से प्रत्येक की सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम नहीं हो जाता तबतक खुले में घूमने की छूट देने और सबकुछ खोल देना बिल्कुल उचित नहीं है। बिना पुख्ता इंतजाम व व्यवस्था के स्थिति को सामान्य करने का ही नतीजा है कि गुड़गांव में कोरोना का कहर देखने को मिल रहा है। अभी सबकुछ

आर्गेनिक खेती और हैड्रोपोनिक खेती का बढ़ता चलन

ऑर्गेनिक खेती और हैड्रोपोनिक खेती का बढ़ता चलन हालही में मैंने 4 नवंबर, 2020 के अंक में छपा एक लेख पढ़ा जिसका शीर्षक था 'लेक्चरर की नौकरी छोड़ बनें किसान' मिट्टी नहीं पानी में उगती हैं फल और सब्जियाँ। यह कारनामा गुरकीरपाल सिंह नामक व्यक्ति ने कर दिखाया। जो एक कंप्यूटर इंजीनियर थे और लेक्चरर पद पर नौकरी करते थे। उन्होंने नौकरी छोड़कर खुद को खेती के प्रति समर्पित कर दिए। वे आजकल हैड्रोपोनिक तरीके से सब्जियाँ उगा रहे हैं, जो काबिलेतारीफ है। मैं आपका ध्यान इस तरफ आकर्षित करना चाहता हूँ जो विसंगति के रूप में हमारे समाज में व्याप्त है कि शिक्षित व्यक्ति खेती करे..... कदापि नहीं..? ऐसी सोच रखनेवालों के मुँह पर सीधा तमाचा जड़ा है भाई गुरकीरपाल सिंह ने। ये पहल आज के युवापीढ़ी के लिए अवश्य लाभकारी होगा क्योंकि जिस गति से आबादी बढ़ रही है और कृषि का अनुपात कम हो रहा है। ऐसे में कम जगह में खेती का प्रचलन बढ़ रहा है और उत्तम खेती की आवश्यकता है। जिसमें पुरानी परिपाटी से किए जाने वाले खेती को छोड़कर नई तकनीकी और पद्धतियों को अपनाया जा रहा है। इतना ही नहीं आजकल तो आर्गेनिक खेती का भी चलन बहुत जोरो

अनमोल वचन ➖ 3

 अनमोल वचन ➖ 3 सद्गुरु हम पर प्रसन्न भयो, राख्यो अपने संग प्रेम - वर्षा ऐसे कियो, सराबोर भयो सब अंग। सद्गुरु साईं स्वरूप दिखे, दिल के पूरे साँच जब दुःख का पहाड़ पड़े, राह दिखायें साँच। सद्गुरु की जो न सुने, आपुनो समझे सुजान तीनों लोक में भटके, तबतक गुरु न मिले महान। सद्गुरु की महिमा अनंत है, अहे गुणन की खान भवसागर पार उतार दियो, कैसे करूँ मैं बखान। सद्गुरु के बिनु लागे है, ये जीवन निस्सार जग के रिश्ते किस काम के, गुरू ही खेवनहार। सद्गुरु की मैं शरण गह्यो, चरण धरि लियो माथ करि गहि उठाय उर लाहि लियो, आनंद भयो अपार। ➖अशोक सिंह 'अक्स' #अक्स  #स्वरचित_हिंदीकविता  #पागल_पंथी_का_जुनून

सबसे सरल सहज और दुर्बल प्राणी शिक्षक

 सबसे सरल, सहज और दुर्बल प्राणी 'शिक्षक' आप हमेशा से ही इस समाज में एक ऐसे वर्ग, समुदाय या समूह को देखते आये हैं जो कमजोर, दुर्बल या स्वभाव से सरल होता है और दुनिया वाले या अन्य लोग उसके साथ कितनी जटिलता, सख्ती या बेदर्दी से पेश आते हैं। वो बेचारा अपना दुःख भी खुलकर व्यक्त नहीं कर पाता है। वैसे तो उसे समाज का निर्माता, देश का निर्माण करने वाला, विश्वबंधुत्व की भावना को विकसित करने वाला आदि..आदि कहा जाता है। बेचारा शिक्षक कोरोना काल में भी भेदभाव व निरीहता का शिकार हो रहा है। एकतरफ ऑनलाइन शिक्षा की चुनौतियों को स्वीकार कर अच्छे से शिक्षण कार्य को अंजाम दे रहा है तो दूसरी तरफ संस्थाओं में जाकर उपस्थिति देने के लिए विवश किया जा रहा है। पहले संस्था वालों ने विवश किया और अब तो प्रशासन का निर्देश भी आ गया। एक तरफ कोरोना काल के जानलेवा घातक विषाणुओं का खतरा तो दूसरी तरफ उपस्थित न होने पर सैलरी काटने की धमकी। शिक्षक हमेशा भलाई के कार्य में संलिप्त रहते हैं। चाहे वे विद्यालय में रहें या विद्यालय के बाहर हमेशा समाज व देश के भलाई के कार्य को बखूबी अंजाम देते हैं। आज शिक्षकों की जो ज्वलंत

हिंदी पाठ्यपुस्तक मूल्यमापन एवं आराखड़ा प्रशिक्षण कार्यक्रम संपन्न

  हिंदी पाठ्यपुस्तक, मूल्यमापन एवं आराखड़ा प्रशिक्षण कार्यक्रम संपन्न महाराष्ट्र राज्य माध्यमिक व उच्च माध्यमिक शिक्षण मंडल और बालभारती  के संयुक्त तत्वावधान में बहुप्रतीक्षित बारहवीं की हिंदी पाठ्यपुस्तक, मूल्यमापन एवं आराखड़ा संबंधित प्रशिक्षण कार्यक्रम दिनांक 1 नवंबर, 2020 को सुबह 11.30 बजे संपन्न हुआ। प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुवात बोर्ड अध्यक्षा श्रीमती शकुंतला काले के स्वागत वचन, अभिनन्दन व शुभकामनाओं के साथ हुआ। उसके बाद डायरेक्टर डॉ. दिनकर पाटिल के शुभकानाओं की प्रस्तुति हुई और उन्होंने प्रशिक्षण सावधानीपूर्वक लेने की आवश्यकता पर जोर दिया। बेशक कोरोना प्रकोप के कारण प्रशिक्षण कार्य में विलंब हो चुका है। दरअसल नई पाठ्यपुस्तक होने के कारण उसका मूल्यमापन व पुस्तक परिचय का प्रशिक्षण सत्र के प्रारंभ में ही होना चाहिए था पर 60 प्रतिशत पाठ्यक्रम की समाप्ति पर कृतिपत्रिका व मूल्यमापन संबंधी जानकारी प्रस्तुत की गई जिससे प्राध्यापकों का कार्य व दायित्व और अधिक बढ़ गया है। संयोजन की भूमिका में डॉ. मिलिंद कांबले ने महती भूमिका निभाते हुए सतही परिचय व तकनीकी सहायकों का आभार व योगदान को प्रोत्स