संदेश

दिसंबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

तुम शेर बन अड़े रहो....

 तुम शेर बन अड़े रहो.... कोरोना अभी गया नहीं... शेर बन अड़े रहो, घर में ही डटे रहो शेरनी भी साथ हो, शावक भी पास हो बाहर हवा ठीक नहीं, निकलना उचित नहीं शेर बन अड़े रहो, घर में ही डटे रहो...। दूध की मांग हो या सब्जी की पुकार हो भले राशन की कमी हो, तुम फिकर करो नहीं तुम निडर खड़े रहो, बिल्कुल डरो नहीं शेर बन अड़े रहो, घर में ही डटे रहो। गालियां सुनते रहो, काम काज करते रहो चौका बर्तन से न डरो, घर में ही डटे रहो बीमार गर कोई भी हो, फोन कर दिया करो तुम शेर बन अड़े रहो, घर में ही डेट रहो। शेरनी बवाल करे, बस चुपचाप सहते रहो कोरोना काल है, बस घर में ही डटे रहो रात हो या दिन हो, गरम पानी पीया करो तुम शेर बन अड़े रहो, घर में ही डटे रहो। मास्क की कमी न हो, सेनिटाइजर साथ धरो समय विकराल है, यमराज खड़े तैयार हैं घर से तुम निकले नहीं, यमराजदंड चला नहीं तुम शेर बन अड़े रहो, घर में ही डटे रहो। वायरस अभी मरा नहीं, हवा भी डरा रही वैक्सीन ईजाद हो रहा, इंतजार थोड़ा ही सही यत्न कर निकाल लो, मुश्किल घड़ी ये सही तुम शेर बन अड़े रहो, घर में ही डटे रहो। आस-पास खौफ है, खौफ़जदा लोग हैं आमदनी रही नहीं, खर्च ज्यों का त्यों सही ल

नसीब अपना अपना...

 नसीब अपना-अपना किसी ने सच कहा है साहब दुनिया में सभी लेकर आते हैं नसीब अपना-अपना....। विधिना ने जो लिख दिया तकदीर छठी की रात  मिटाए से भी नहीं मिटता लकीर खींची जो हाथ....। नसीब में होता है तो बिना माँगे मोती मिल जाता है नसीब में न होने पर माँगने से भीख भी नहीं मिलती है। ये तो नसीब का ही खेल है रात का सपना सुबह सच हो जाता है कुछ तो सपनें में ही खोये रहते हैं और जिंदगी बीत जाती है। नसीब से ही लोंगों को घर परिवार और बच्चे मिलते हैं कुछ तो सबकुछ होते हुए भी इन सबके लिए तरसते हैं...। एक ही समय पर जन्में लोगों में कोई राजा बनता है तो कोई रंक जो नसीब में है दौड़ के आता है नहीं है तो आके भी चला जाता है। ये नसीब ही तो है साहब चायवाला प्रधानमंत्री बन गया और प्रधानमंत्री का लाड़ला आज दर-दर भटक रहा...। नसीब ने फर्श से अर्श को तरासा अभावों को दूर कर जिंदगी सँवारा रेत में भी गुलशन खिला दिया ज़हालत को देख आफ़ताब ला दिया। पर ये सच है साहब नसीब भी साथ देता है  मेहनत करने वालों का बाकियों का तो बेड़ा गर्क होता है। ➖अशोक सिंह 'अक्स' #अक्स  #स्वरचित_हिंदीकविता

जब-जब मैं उसे पुकारूँ...

 जब-जब मैं उसे पुकारूँ... जब-जब मैं उसे पुकारूँ वो दौड़ी-दौड़ी चली आए आँधी हो या तूफान हो वो कभी ना घबराए...। ऐसी प्यारी निंदिया.... सभी के भाग्य में आए अकेलेपन की रुसवाई में कभी भी ना सताए...। निंदिया को मैं पुकारूँ सपनों की बाट जोहूँ सपना लगती अति सुहानी एकदम परियों सी कहानी। परियों की कहानी अलबेली जो होती है एकदम निराली संग-संग ले उड़ती रंगीली बनकर तितली चमकीली। जब-जब मैं उसे पुकारूँ वो दौड़ी-दौड़ी चली आए आँधी हो या तूफान हो संग परियों को भी लाए। वो जब भी हाँ-हाँ आती अपनी होती है पौ बारह दिन भर की थकान मिटाती फिर हो जाती नौ-दो ग्यारह। जादुई सी शक्ति मिलती परियों के संग मस्ती होती गहरी नींद में हम सो जाते तरोताज़ा हो प्रातः उठते। मुझे खुशी है निंदिया रानी तुम हो रातों की महारानी एकदम से हो औढरदानी तुमसे है जीवन की रवानी। ➖ अशोक सिंह 'अक्स' #अक्स  #स्वरचित_हिंदीकविता

एक मसीहा जग में आया.....

  एक मसीहा जग में आया.... एक मसीहा जग में आया दलितों का भगवान बना राजनीति मन को ना भाया ज्ञानसाधना ही आधार बना। निर्धनता को धता बताया छात्रवृत्ति से अरमान सजोया काला पलटन में स्थान मिला गुरू से पूरा सम्मान मिला। अर्थशास्त्र जो मन को भाया डॉक्टरेट की डिग्री दिलवाया वर्णव्यवस्था थी मन में चुभती शोध प्रबंध उस पर ही छपती। सकपाल छोड़ आंबेडकर कहलाए गुरू का आदेश शिरोधार अपनाए मानव में रक्त्त एक भाँति हैं आये स्वार्थवश सब ने जाति-पाति बनाये। छूत-अछूत को किया उजागर दिलवाया समता का अधिकार ज्ञान बढ़ा ऊँचा स्थान मिला दलितोद्धार का मार्ग प्रशस्त किया। कहते मानव-मानव एक समान रच डाले भारत का संविधान अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया आंबेडकर ने खूब नाम कमाया। दलितवर्ग का होके ब्राह्मणी से किए शादी प्रबल समाज के ठोकर से हो गई बरबादी बाबा ने अपना जीवन यों न्योछावर कर दी जाते-जाते दलितोद्धार मार्ग प्रशस्त कर दी। परिनिर्वाण दिवस लोंगों ने क्या खूब मनाया मौत की गुत्थी कोई अभी सुलझा नहीं पाया कोई कहता डायबिटीज तो कोई कहता हत्या कूटनीतिक शिकार बन गए भाई बाबा सत्या। एक मसीहा जग में आय

गुम हूँ उसके याद में....

  गुम हूँ उसके याद में.... गुम हूँ उसके याद में, जिसे चाहा था कभी गोदी में सुलाकर जिसने, दुलारा था कभी प्रसव-वेदना की पीड़ा से, जाया था कभी दुःख सहकर उसने, पाला-पोसा था कभी रात-रात भर जागकर, सुलाया था कभी। गुम हूँ उसके याद में, जिसने दुनिया में लाया था कभी अपने सपनों को तोड़-तोड़कर, जिलाया था कभी खुद भूखी रह-रहकर के, मुझे खिलाया था कभी मोह माया में फँसकर के, मुझे भुला दिया तभी बातों से मूर्च्छा आ जाती, दूरी बना लिया तभी। गुम हूँ उसके याद में, जिसनें गुमराह कर दिया वफादारी के बदले में, उसने धोखा जो दे दिया विश्वास किया था उनपे, पर विश्वासघात हो गया मेरी बातें रास नहीं आती, बर्बाद जो कर दिया ज़मीन ज़ायदाद व जान से, अपना हाथ धो लिया। गुम हूँ उसके याद में, जिसने बर्बाद कर दिया मन बढ़ाकर उसका, जीना हराम कर दिया किसका हिस्सा कैसा हिस्सा, राग क्या अलापा शरणागत में धोखा हो गया, फैला दिया फिर स्यापा मैं शिकवा करूँ क्या गैरों से, मुझे अपनों ने ही लूटा। गुम हूँ उसके याद में, जिसने बलि चढ़ा दिया जिसने जाया उसने ही, बलि का बकरा बना दिया धृतराष्ट्र बन गए पुत्रमोह में, कुल विध्वंस करा

वक़्त का तराजू..

 वक़्त का तराजू वक़्त वह तराजू है साहब जो बुरे वक़्त में अपनों का वजन बता देता है पराये को साथ लाकर खड़ा कर देता है वक़्त ही वह मरहम है साहब जो गहरे से गहरे घाव को भी फौरन भर देता है और भरे हुए घाव को कुरेदकर हरा कर देता है वक़्त ही सबसे बड़ा गुरू है साहब जटिल पाठ को भी पल भर में समझा देता है मूर्ख को भी विद्वता का सरताज़ बना देता है वक़्त की तालीम अनूठा है साहब भुलाने से भी नहीं भूलता है भूले को सही वक़्त पर याद भी आ जाता है वक़्त की नजाकत समझनेवाला राज करता है दुष्काल सी परिस्थिति में भी परवाज़ भरता है वक़्त वह हमसफ़र है साहब साथ चलने वाला बुलंदियों को छूता है झोपड़े में रहकर भी महल का सुख भोगता है वक़्त का अपना इतिहास है साहब जिसने भी वक़्त को धता बताया है साहब सच कहता हूँ...... वक़्त ने सँभलने का मौका ही नहीं दिया सीधे चारो खाने चित कर दिया वक़्त तो कालजयी है साहब इतिहास पर इतिहास रच दिया चायवाले को प्रधानमंत्री बना दिया तेंडुलकर को क्रिकेट का भगवान बना दिया बच्चन को सदी का महानायक बना दिया ठाकरे को सत्ता की गद्दी दिला दिया इस जग को कोरोना के हवाले कर दिया वक़्त का भी वक़्त बदलता है साहब वक़्त को मैंने

शामत मुझ पर ही आनी है....

  शामत मुझ पर ही आनी है... शादी अपनों की हो या किसी बेगाने की खर्चा उतना ही है जी श्रीमतीजी के जाने की। जब देखो तब सुनाती रहती हैं खर्च ही क्या है? खर्च ही क्या है? सुन – सुनकर कान पक गया दुकानों के चक्कर काटते-काटते सच मानों पूरा दिन बीत गया…. जेब खाली होकर क्रेडिट पर आ गया। सोचा छोड़ो अब तो झंझट छूटा तभी खनकती आवाज सुनाई दी अभी तो बाकी है घड़ी – सोनाटा गुड़िया के कानों का झुमका…. कमर का करधन भी था टूटा बस एक बिछिया भी झन्नाटा। हाय राम! बजट तो ढीला हो गया छह महीनें का कर्ज भी लद गया जानें से पहले ही बेड़ा गर्क हो गया हवाई जहाज का टिकिट जो लिया दिल तो पूरी तरह से बैठ गया…. आँखों के आगे अँधेरा सा छा गया। ये क्या! सांस अब उखड़ने लगी रह रहकर त्योरियाँ भी चढ़ने लगी अचानक दोनों आँखे फड़कने लगी वो सजधजकर तैयार होने लगी…। मेरे पास आकर बोलती हैं माना कि बेगाने की शादी है पर ये हाथ रोकड़े का आदी है बस आपसे रोकड़े की मुनादी है तिजोरी पहले से ही खुलवा दी है। अपनों की बात तुम छोड़ो ये तो बेगाने की शादी है ज्यादा समान नहीं खरीदी अरमानों को भी सुला दी है। मैंन

भोजन के प्रकार

 भोजन के प्रकार   भीष्म पितामह ने अर्जुन को 4 प्रकार से भोजन न  करने के लिए बताया था... और किस तरह का भोजन करने के लिए बताया था ... पहला भोजन .... जिस भोजन की थाली को कोई लांघ कर गया हो वह भोजन की थाली नाले में पड़े कीचड़ के समान होती है ...! दूसरा भोजन .... जिस भोजन की थाली में ठोकर लग गई,पाव लग गया वह भोजन की थाली भिष्टा के समान होता है ....! तीसरे प्रकार का भोजन .... जिस भोजन की थाली में बाल पड़ा हो, केश पड़ा हो वह दरिद्रता के समान होता है .... चौथे नंबर का भोजन .... अगर पति और पत्नी एक ही थाली में भोजन कर रहे हो तो वह मदिरा के तुल्य होता है ..... और सुनो अर्जुन अगर पत्नी,पति के भोजन करने के बाद थाली में भोजन करती है उसी थाली में भोजन करती है या पति का बचा हुआ खाती है तो उसे चारों धाम के पुण्य का फल प्राप्त होता है .. अगर दो भाई एक थाली में भोजन कर रहे हो तो वह अमृतपान कहलाता है चारों धाम के प्रसाद के तुल्य वह भोजन हो जाता है .... और सुनो अर्जुन ..... बेटी अगर कुमारी हो और अपने पिता के साथ भोजन करती है एक ही थाली में तो उस पिता की कभी अकाल मृत्यु नहीं होती .... क्योंकि बेटी पिता की

अबला की चाह

 अबला की चाह चाह नहीं मैं अनपढ़ गँवार रह अनजान के माथे थोपी जाऊँ बस चाह नहीं मैं बीज की तरह जब जहाँ चाहे वहाँ बोयी जाऊँ चाह नहीं सूत्र बंधन की भी बंधि दहेज प्रथा की बलि चढ़ी जाऊँ बस चाह नहीं है इस जग में अधिकारों से वंचित रह जाऊँ....! चाह मेरी बस इतनी सी है... बाला बनकर जनमूं जग में जीने का हो अधिकार मेरा दादा-दादी की गुड़िया बनकर भाई की उँगली को पकड़कर माँ-बापू का प्यार मैं पाऊँ घर भर में मैं दुलारी जाऊँ विपदा में मैं वारी जाऊँ.... बस इतना मुझे अधिकार मिले...। हर बाला जो जन्में इस जग में उसे जीने का अधिकार मिले गोदी से लेकर गद्दी तक हर जगह उसे सम्मान मिले बाला वंचित न हो अधिकारों से ऐसा घर-वर सहज समाज मिले लक्ष्मी-दुर्गा सी पूजी जाए ऐसा कुल परिवार खानदान मिले...। अक्स पूछें हैं दुनिया वालों क्यों नफरत बाला से करते हो...? है वो भी तुम्हारे खून का कतरा फिर भी गर्भपात की सोचे हो क्या मन में इच्छा नहीं होती है..? उसकी तोतली बोली सुनने को अभयदान बाला को कर दो हर गुड़िया को जीने दो....। बस अरदास मेरी इतनी सी है जिस घर में बेटी का कदर न हो उस घर में कोई बाप बेटी न ब्याहै जो कोख में मारे हैं बेटी