स्वस्थ रहना है तो....
स्वस्थ रहना है तो….
स्वस्थ रहना है तो नियम का पालन अर्थात अनुशासन को जीवन में अपनाना होगा। कहा जाता है कि स्वास्थ्य ही सबसे बड़ी संपत्ति है। बिल्कुल सही है। यदि स्वास्थ्य अच्छा नहीं होगा तो खुशी व प्रसन्नता कहाँ से मिलेगी। कहने का तात्पर्य यह है कि खुशी व प्रसन्नता के लिए सुख सुविधाओं का व शारीरिक सुखों के अनुभूति को महत्त्व देने से है। यह सुख हमें तभी प्राप्त हो सकता है जब हम स्वस्थ और निरोगी होंगें। स्वस्थ रहने के लिए तमाम उपाय बताए जाते हैं। जिसमें से कुछ एक कि हम यहाँ पर चर्चा अवश्य करेंगे जिससे कि पाठकगण भी इसका पूरा लाभ उठा सकें।
परम्परागत जो मान्यता है वह इस प्रकार है कि लंबा जीवन जीना है, दीर्घायु बनना है तो प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में उठना आवश्यक है। ऐसा हमारे शास्त्र कहते हैं। जरूरी नहीं है कि परम्परा के रूप में चली आ रही चलन या शास्त्रों की सारी बातें मानी जायें। पर इस पर थोड़ा सा चिंतन या मंथन तो किया जा सकता है। बिना भेदभाव के सोच विचार करें तो खुद ही पता चल जाएगा कि क्या उचित है और हमारे लिए कितना लाभदायी और फायदेमंद है। लोग ब्रह्म मुहूर्त में उठने की बात करते हैं और अच्छी भी है। पर सोचो जरा क्या आप स्वाभाविक रूप से ब्रह्म मुहूर्त में उठने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो… आपके लिए सुविधाजनक है।
जो लोग रात में देर तक जागे रहते हैं उनके लिए सुबह जल्दी ब्रह्म मुहूर्त में उठना संभव नहीं है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने के लिए रात में जल्दी लगभग 10 बजे तक सोना होगा। तब कहीं जाकर ब्रह्म मुहूर्त में उठ सकेंगे।
कहने का तात्पर्य यह है कि सुबह जल्दी उठने के लिए जल्दी सोना आवश्यक है। अतः स्वस्थ रहने के लिए सबसे अधिक जरूरी है हमारे नींद का पूरा होना। वैज्ञानिक और चिकित्सक की मानें तो स्वस्थ व्यक्ति को कम से कम आठ घंटे की नींद पूरी करनी चाहिए। बेशक सुबह ब्रह्म मुहूर्त के समय वातावरण शुद्ध होता है। हमारे शरीर को अधिक मात्रा में ऑक्सिजन मिलती है। सुकून और शांति का वातावरण होता है जिससे मनुष्य कुछ क्षण के लिए निश्चिंतता का जीवन जीता है। बिल्कुल तनावमुक्त होकर, जिसका सकारात्मक प्रभाव हमारे शरीर व जीवन पर पड़ता है।
इतना ही नहीं हमें नियमित रूप से स्वास्थ्यवर्धक पौष्टिक भोजन लेना पड़ता है। नियमित रूप से योग का अभ्यास और हल्का-फुल्का व्यायाम भी करना होता है।
इन सबके अलावा अपने कार्य व क्रिया को पूर्ण करने के पश्चात जो सुबह या शाम के समय फुर्सत होगी उसमें गहरा ध्यान और ईश्वर की प्रार्थना भी करना आवश्यक होता है। अतः स्वस्थ रहने के लिए भौतिक सुखों की उतनी आवश्यक्ता नहीं है जितनी आध्यात्मिक योग और शारीरिक व्यायाम की। थोड़ा बहुत मनोरंजन और रुचि के मुताबिक पुस्तक का अध्ययन भी करना चाहिए। विकास के लिए परिश्रम जितना आवश्यक है स्वस्थ जीवन के लिए संतुष्ट और आश्वस्त होना उतना ही आवश्यक होता है। इन सबके बीच समन्वय बनाकर सामंजस्य स्थापित करने से ही जीवन सुखद, शरीर स्वस्थ, आनन्ददायी और समृद्ध बनता है। इसीलिए तो कहा जाता है कि 'स्वस्थ जीवन हजार नियामत।'
Very nice
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