अब नहीं रहा....No more...
अब नहीं रहा.....NO more...
ईश्वर की लीला ईश्वर ही जानें..
देता है तो जी भर देता है
लेता है तो कमर तोड़ देता है
परीक्षा भी लेता है तो
कितना कठिन, दुष्कर, प्राणघातक
सबकुछ छीन लेता है- प्राण तक
जिसने सबकुछ झेला
कभी कुछ न बोला
उफ़ तक न किया
सँभलने का समय आया तो
उसी के साथ इतना बड़ा अन्याय
आखिर क्यों...?
क्या इस क्यों..का जवाब है - तेरे पास
नहीं, तू तो अदृश्य है, निराकार है
जवाब कैसे देगा...?
पर अंतर्यामी तो है...
जानता है सबकुछ... हाँ सबकुछ
तो बता खता कहाँ हुई..?
क्या तपस्या..आराधना
या विश्वास में कोई कमी थी..?
तू तो समदर्शी दया का सागर कहलाता है
तो फिर क्यों किया भेदभाव..?
डूबते को तिनके का सहारा न देकर
उसे और डूबा दिया....!
सच ही कहा है लोंगों ने कि....
तू तो निर्जीव ..पत्थर है....
तेरे भीतर न कोई भाव है न कोई वेग-संवेदना
तू क्या समझे लोंगों के दुःख और दर्द को..?
तू तो निर्दयी है..हाँ-हाँ घोर निर्दयी...
और नहीं तो क्या... इससे बड़ा दुर्दिन...
और क्या हो सकता है...?
ये जो किया...उसे देख कर
क्या तेरी अंतरात्मा नहीं काँपी ...?
व्यर्थ में ही जग तुझे पूजती है
उन्हें नहीं मालूम कि
तू कितना बड़ा धूर्त, क्रूर और निर्दयी है...
हँसते हुए को रुलाता है
रोते हुए को और त्रस्त करता है
मरते हुए को और मारता है..
यही सत्य है निर्मोही...
तीनों को देख अपनी नज़र से
विकास अनुज और अमित
वही अवस्था और दहकती तरुणाई
क्रूर तांडव नर्तन करते हुए तरस नहीं आई
क्या कभी सोचा परिजनों पर क्या बीती..?
खैर मेरा तर्क निरर्थक और बेबुनियाद है
तू तो खुद पत्थर व क्रूर है
परिजनों को भी वैसा ही समझा होगा....
कहते हैं कर्मों का हिसाब होता है
काश! तेरे भी कर्मों का हिसाब हो...
तेरे इस निष्ठुर कर्म का दुष्फल तुझे मिले...
पर तुझे क्या...? तू तो प्रभावहीन है- निष्क्रिय
काल-कालांतर से ऐसे ही विराजमान
अशोका कभी मॉफ नहीं करेगा..
भले ही तेरी विनाशलीला का बनना पड़े कोपभाजन..
पर यही अटल सत्य है..सर्वत्र - सर्वव्यापी
तू है निर्दयी... निर्मोही.... निष्ठुर.... निष्क्रिय....... सर्वकालिक।
➖ प्रा. अशोक सिंह...🖋️
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