रोजगार के लिए समाचार लेखन और संपादन में सुनहरा अवसर
रोजगार के लिए समाचार लेखन और संपादन में सुनहरा अवसर
आज वैश्वीकरण के युग में समाचार का बहुत महत्त्व है। सैटेलाइट का माध्यम से आज के युग में रेडिओ, टेलीविजन, मोबाईल, समाचारपत्र में विश्व में घटित घटनाओं के समाचार उपलब्ध होते हैं। बेशक समाचार के क्षेत्र में आमूल परिवर्तन व क्रांति है। और आज समाचार के माध्यम से जनहित व कल्याण का कार्य भी हो रहा है। अतः आज समाचार का स्वरूप बहुजन हिताय और बहुजन सुखाय का हो गया है। लाखों लोंगों को रोजगार सिर्फ समाचार क्षेत्र में उपलब्ध है। आज हम विश्व के कोने-कोने में घटने वाले कोई भी समाचार को पलभर में देख, पढ़ या सुन लेते हैं। उसके पीछे अनेक लोंगों का परिश्रम, एकाग्रता और प्रतिबद्धता शामिल रहता है। समाचार का इतिहास वैसे तो बहुत पुराना है। देवऋषि नारदमुनि का नाम सभी जानते हैं। वे मुख्य रूप से देवलोक में समाचार ही पहुँचाया करते थे। दूसरी तरफ मौखिक रूप से जो समाचार दिया करते थे, पहुँचाया करते थे वे खबरीलाल कहलाते थे। ऐसे लोग आज भी समाज में पाए जाते हैं। दरअसल मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जिस समाज में और वातावरण में रहता है वह उस बारे में जानने को उत्सुक रहता है। अपने आसपास घट रही घटनाओं के बारे में जानकर उसे एक प्रकार से संतोष, आनंद और ज्ञान की प्राप्ति होती है। पहले पत्र के जरिये समाचार प्राप्त करना इन माध्यमों में सर्वाधिक पुराना माध्यम है जो लिपि और डाक व्यवस्था के विकसित होने के बाद अस्तित्व में आया था। पत्र के जरिये अपने प्रियजनों, मित्रों और शुभाचिंतकों को अपना समाचार देना और उनका समाचार पाना मनुष्य के लिये सर्वाधिक लोकप्रिय साधन था। समाचारपत्र, रेडियो और टेलीविजन समाचार प्राप्ति के आधुनिकतम साधन हैं। प्रिंट मीडिया के बाद इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का चलन वैज्ञानिक खोज के बाद अस्तित्व में आये हैं। भारत का पहला समाचारपत्र 'बंगाल गजट' है जिसकी शुरुआत वर्ष 1780 में बंगाल में हुई थी। इसके बाद विविध भाषाओं में अनेक समाचारपत्र प्रकाशित होने लगे थे। कालांतर में रेडियो की शुरूआत वर्ष 1924 में हुई और दूरदर्शन की शुरूआत वर्ष 1959 में हुई। क्रमशः 'सत्यं-शिवं-सुंदरम' और 'बहुजन हिताय बहुजन सुखाय' के मूलमंत्र को अपनाकर जनहित में प्रसारण कार्य शुरू किया गया था।✔️समाचार क्या है…?
समाचार शब्द सम +आचरण का सम्मिलत रूप है जिसका अर्थ है समान रूप से आचरण करना। समाचारों में निष्पक्षता पर जोर दिया जाता है। अर्थात् सभी के प्रति समान आचरण बरतते हुए तथ्यों को उजागर करना, स्वयं निष्पक्ष रहते हुए समाचार देने या लिखने के कार्य का निर्वहन किया जाता है।
परिभाषा के अनुसार, समाचार वह समसामयिक सूचना है, जिसमे जन रूचि जुड़ी हो तथा लोग उसे जानने के लिए उत्सुक हो। बिना जनरुचि के कोई सूचना समाचार नहीं हो सकती है। लोग आमतौर पर अनेक काम आपसी सहयोग से ही करते हैं। सुख-दुख की घड़ी में वे साथ होते हैं। दुर्घटनाओं और विपदाओं के समय वे साथ ही होते हैं। इन सबको हम घटनाओं की श्रेणी में रख सकते हैं। फिर लोगों को अनेक छोटी बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। समाचार किसी बात को लिखने या कहने का वह तरीका है जिसमें उस घटना, विचार, समस्या के सबसे अहम तथ्यों या पहलुओं को सबसे पहले बताया जाता है और उसके बाद घटते हुये कमतर क्रम में अन्य तथ्यों या सूचनाओं को लिखा या बताया जाता है।
✔️ समाचार के प्राणतत्व ➖
विस्तार ➖ समाचार का सीधा अर्थ है-सूचना। मनुष्य के आस-पास और चारों दिशाओं में घटने वाली सूचना। समाचार को अंग्रेजी के न्यूज का हिंदी अर्थ है। न्यूज का अर्थ है चारों दिशाओं की सूचना। इस प्रकार समाचार का अर्थ सभी दिशाओं में घटित घटनाओं की सूचना।
नयापन ➖ जिन बातों को मनुष्य पहले से ही जानता है वे बातें समाचार नहीं हो सकती हैं। वे बातें ही समाचार बनती हैं जिनमें कोई नई सूचना, कोई नई जानकारी हो। इस प्रकार समाचार का मतलब हुआ नई सूचना अर्थात समाचार में नयापन होना चाहिए।
विशेष ➖ हर नई सूचना समाचार नहीं हो सकती है। जिस नई सूचना में समाचार की खूबी होगी वही नई सूचना समाचार कहलायेगी। अर्थात नई सूचना में कुछ ऐसी विशेष बातें होनी चाहिए जो उसमें समाचार जैसे गुण पैदा करे।
4. सच्चाई और प्रमाणिकता ➖ समाचार में किसी घटना की सच्चाई होनी चाहिए। समाचार अफवाहों या उड़ी-उड़ायी बातों पर आधारित नहीं होता है। वह सच्ची घटनाओं की तथ्यात्मक जानकारी पर आधारित होती है। तथ्यता होने से ही समाचार विश्वसनीय और प्रमाणिक होते हैं। जैसे सरकारी अधिकारी रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया। इसमें सच्चाई की झलक दिखाई दे रही है।
5. रोचकता ➖ किसी भी सूचना में अधिक लोगों की दिलचस्पी भी होनी चाहिए। कोई सूचना कितनी ही आसाधरण क्यों न हो अगर उसमें लोगों की रुचि नहीं है तो वह सूचना समाचार नहीं बन पायेगी। नेताजी का कोरोना ग्रस्त होना समाचार है पर कोरोना को मात देना रोचक समाचार है।
6. प्रभावोत्पादक ➖ समाचार रोचक ही नहीं प्रभावोत्पादक और असरदार भी होना चाहिए। अगर किसी घटना की सूचना समाज के किसी समूह या वर्ग को प्रभावित नहीं करती तो उस घटना की सूचना उनके लिए कोई मायनें नहीं रखता है।
7. स्पष्टता ➖ एक अच्छे समाचार की भाषा सरल, सहज और स्पष्ट होनी चाहिए। जिससे की लोंगों को आसानी से समझ में आ जाए। इसलिए समाचार की भाषा सीधी और स्पष्ट होनी चाहिए।
✔️समाचार लेखन की संपूर्ण प्रक्रिया ➖
उल्टा पिरामिड सिद्धांत ➖ उल्टा पिरामिड सिद्धांत समाचार लेखन का बुनियादी सिद्धांत है। यह समाचार लेखन का सबसे सरल, उपयोगी और व्यावहारिक सिद्धांत है। समाचार लेखन का यह सिद्धांत कथा या कहनी लेखन की प्रक्रिया के ठीक उलट है। इसमें किसी घटना, विचार या समस्या के सबसे महत्वपूर्ण तथ्यों या जानकारी को सबसे पहले बताया जाता है, जबकि कहनी या उपन्यास में क्लाइमेक्स सबसे अंत में आता है। इसे उल्टा पिरामिड इसलिये कहा जाता है क्योंकि इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना पिरामिड के निचले हिस्से में नहीं होती है और इस शैली में पिरामिड को उल्टा कर दिया जाता है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण सूचना पिरामिड के सबसे उपरी हिस्से में होती है और घटते हुये क्रम में सबसे कम महत्व की सूचनायें सबसे निचले हिस्से में होती है।समाचार लेखन की उल्टा पिरामिड शैली के तहत लिखे गये समाचारों के सुविधा की दृष्टि से मुख्यतः तीन हिस्सों में विभाजित किया जाता है-मुखड़ा या इंट्रो या लीड, बॉडी और निष्कर्ष या समापन। इसमें मुखड़ा या इंट्रो समाचार के पहले और कभी-कभी पहले और दूसरे दोनों अनुच्छेद को कहा जाता है। मुखड़ा किसी भी समाचार का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है क्योंकि इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्यों और सूचनाओं को लिखा जाता है। इसके बाद समाचार का कलेवर आता है, जिसमें महत्व के अनुसार घटते हुये क्रम में सूचनाओं और ब्यौरा देने के अलावा उसकी पृष्ठभूमि का भी जिक्र किया जाता है। सबसे अंत में निष्कर्ष या समापन आता है। समाचार लेखन में निष्कर्ष जैसी कोई चीज नहीं होती है और न ही समाचार के अंत में यह बताया जाता है कि यहाँ समाचार का समापन हो गया है।
▶️मुखड़ा ➖ प्रस्तावना या इंट्रो या लीड उल्टा पिरामिड शैली में समाचार लेखन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू मुखड़ा लेखन या इंट्रो या लीड लेखन है। मुखड़ा समाचार का पहला अनुच्छेद होता है, जहाँ से कोई समाचार शुरु होता है। मुखड़े के आधार पर ही समाचार की गुणवत्ता का निर्धारण होता है। एक आदर्श मुखड़ा में किसी समाचार की सबसे महत्वपूर्ण सूचना आ जानी चाहिए और उसे किसी भी हालत में 35 से 50 शब्दों से अधिक नहीं होना चाहियए। किसी मुखड़े में मुख्यतः छह सवाल का जवाब देने की कोशिश की जाती है। जैसे क्या हुआ, किसके साथ हुआ, कहाँ हुआ, कब हुआ, क्यों और कैसे हुआ है? आमतौर पर माना जाता है कि एक आदर्श मुखड़े में सभी छह प्रश्नों का जवाब देने के बजाय किसी एक मुखड़े को प्राथमिकता देनी चाहिए। उस एक ककार के साथ एक दृ दो ककार दिये जा सकते हैं।
▶️कलेवर ➖ समाचार लेखन की उल्टा पिरामिड लेखन शैली में मुखड़े में उल्लेख किए गए तथ्यों की व्याख्या और विश्लेषण समाचार के कलेवर में होता है। किसी समाचार लेखन का आदर्श नियम यह है कि किसी समाचार को ऐसे लिखा जाना चाहिए, जिससे अगर वह किसी भी बिन्दु पर समाप्त हो जाये तो उसके बाद के अनुच्छेद में ऐसा कोई तथ्य नहीं रहना चाहिए, जो उस समाचार के बचे हुऐ हिस्से की तुलना में ज्यादा महत्वपूर्ण हो। अपने किसी भी समापन बिन्दु पर समाचार को पूर्ण, पठनीय और प्रभावशाली होना चाहिए। समाचार के कलेवर में छह प्रश्नों में से दो क्यों और कैसे का जवाब देने की कोशिश की जाती है। कोई घटना कैसे और क्यों हुई, यह जानने के लिये उसकी पृष्ठभूमि, परिपेक्ष्य और उसके व्यापक संदर्भों को खंगालने की कोशिश की जाती है। इसके जरिये ही किसी समाचार के वास्तविक अर्थ और असर को स्पष्ट किया जा सकता है।
▶️निष्कर्ष या समापन ➖ समाचार का समापन करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि न सिर्फ उस समाचार के प्रमुख तथ्य आ गये हैं बल्कि समाचार के मुखड़े और समापन के बीच एक तारतम्यता भी होनी चाहिये। समाचार में तथ्यों और उसके विभिन्न पहलुओं को इस तरह से पेश करना चाहिये कि उससे पाठक को किसी निर्णय या निष्कर्ष पर पहुंचने में मदद मिले।
✔️समाचार संपादन ➖
समाचार संपादन का कार्य संपादक का होता है। संपादक प्रतिदिन उपसंपादकों और संवाददाताओं के साथ बैठक कर प्रसारण और कवरेज के निर्देश देते हैं। समाचार संपादक अपने विभाग के समस्त कार्यों में एक रूपता और समन्वय स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
✔️संपादन की प्रक्रिया ➖
रेडियो में संपादन का कार्य प्रमुख रूप से दो भागों में विभक्त होता है।
1. विभिन्न स्रोतों से आने वाली खबरों का चयन करना।
2. चयनित खबरों का संपादन करना।
✔️संपादन के महत्वपूर्ण चरण ➖
1. समाचार आकर्षक होना चाहिए।
2. भाषा सहज और सरल हो।
3. समाचार का आकार बहुत बड़ा और उबाऊ नहीं होना चाहिए।
4. समाचार लिखते समय आम बोल-चाल की भाषा के शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।
5. शीर्षक विषय के अनुरूप होना चाहिए।
6. समाचार में प्रारंभ से अंत तक तारतम्यता और रोचकता होनी चाहिए।
7. कम शब्दों में समाचार का ज्यादा से ज्यादा विवरण होना चाहिए।
8. रेडियो बुलेटिन के प्रत्येक समाचार में श्रोताओं के लिए सम्पूर्ण जानकारी होना चाहिए ।
9. संभव होने पर समाचार स्रोत का उल्लेख होना चाहिए।
10. समाचार छोटे वाक्यों में लिखा जाना चाहिए।
11. रेडियो के सभी श्रोता पढ़े लिखे नहीं होते, इस बात को ध्यान में रखकर भाषा और शब्दों का चयन किया जाना चाहिए।
12. रेडियो श्रव्य माध्यम है अतः समाचार की प्रकृति ऐसी होनी चाहिए कि एक ही बार सुनने पर समझ आ जाए।
13. समाचार में तात्कालिकता होना अत्यावश्यक है। पुराना समाचार होने पर भी इसे अपडेट कर प्रसारित करना चाहिए।
14. समाचार लिखते समय व्याकरण और चिह्नो पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है, ताकि समाचार वाचक आसानी से पढ़ सके।
✔️समाचार संपादन के तत्व ➖
संपादन की दृष्टि से किसी समाचार के तीन प्रमुख भाग होते हैं-
1. शीर्षक- किसी भी समाचार का शीर्षक उस समाचार की आत्मा होती है। शीर्षक के माध्यम से न केवल श्रोता किसी समाचार को पढ़ने के लिए प्रेरित होता है, अपितु शीर्षकों के द्वारा वह समाचार की विषय-वस्तु को भी समझ लेता है। शीर्षक का विस्तार समाचार के महत्व को दर्शाता है। एक अच्छे शीर्षक में निम्नलिखित गुण पाए जाते हैं-
1. शीर्षक बोलता हुआ प्रतीत हो। उसके पढ़ने से समाचार की विषय-वस्तु का आभास हो जाए।
2. शीर्षक तीक्ष्ण एवं सुस्पष्ट हो। उसमें श्रोताओं को आकर्षित करने की क्षमता हो।
3. शीर्षक वर्तमान काल में लिखा गया हो। वर्तमान काल मे लिखे गए शीर्षक घटना की ताजगी के द्योतक होते हैं।
4. शीर्षक में यदि आवश्यकता हो तो सिंगल-इनवर्टेड कॉमा का प्रयोग करना चाहिए। डबल इनवर्टेड कॉमा अधिक स्थान घेरते हैं।
5. अंग्रेजी अखबारों में लिखे जाने वाले शीर्षकों के पहले ‘ए’ ‘एन’, ‘दी’ आदि भाग का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। यही नियम हिन्दी में लिखे शीर्षकों पर भी लागू होता है।
6. शीर्षक को अधिक स्पष्टता और आकर्षण प्रदान करने के लिए सम्पादक या उप-सम्पादक का सामान्य ज्ञान ही अंतिम टूल या निर्णायक है।
7. शीर्षक में यदि किसी व्यक्ति के नाम का उल्लेख किया जाना आवश्यक हो तो उसे एक ही पंक्ति में लिखा जाए। नाम को तोड़कर दो पंक्तियों में लिखने से शीर्षक का सौन्दर्य समाप्त हो जाता है।
8. शीर्षक को कर्मवाच्य में लिखने से बचना चाहिए।
2. आमुख- आमुख में समाचार से संबंधित छह प्रश्न कौन, कब, कहाँ, क्या और कैसे का अंतर पाठक को मिल जाना चाहिए। किन्तु वर्तमान में इस सिद्धान्त का अक्षरशः पालन नहीं हो रहा है। आज छोटे-से-छोटे आमुख लिखने की प्रवृत्ति तेजी पकड़ रही है। फलस्वरूप इतने प्रश्नों का उत्तर एक छोटे आमुख में दे सकना सम्भव नहीं है। एक आदर्श आमुख में 20 से 25 शब्द होना चाहिए।
3. समाचार का ढाँचा- समाचार के ढाँचे में महत्वपूर्ण तथ्यों को क्रमबद्ध रूप से प्रस्तुत करना चाहिए। सामान्यतः कम से कम 150 शब्दों तथा अधिकतम 400 शब्दों में लिखा जाना चाहिए। श्रोताओं को अधिक लंबे समाचार आकर्षित नहीं करते हैं।
✔️ समाचार संपादन में समाचारों की निम्नलिखित बातों का विशेष ध्यान रखना पड़ता है ➖
1. समाचार किसी कानून का उल्लंघन तो नहीं करता है।
2. समाचार नीति के अनुरूप हो।
3. समाचार किसी न किसी तथ्य पर आधारित हो।
4. समाचार को स्थान तथा उसके महत्त्व के अनुरूप विस्तार देना चाहिए।
5. समाचार की भाषा पुष्ट एवं प्रभावी है या नहीं। यदि भाषा नहीं है तो उसे पुष्ट बनाएँ।
6. समाचार में आवश्यक सुधार करें अथवा उसको पुर्नलेखन के लिए वापस कर दें।
7. समाचार का स्वरूप सनसनीखेज न हो।
8. अनावश्यक अथवा अस्पस्ट शब्दों को समाचार से हटा दें।
9. ऐसे समाचारों को ड्राप कर दिया जाए, जिनमें न्यूज वैल्यू कम हो और उनका उद्देश्य किसी का प्रचार मात्र हो।
10. समाचार की भाषा सरल और सुबोध हो।
11. समाचार की भाषा व्याकरण की दृष्टि से अशुद्ध न हो।
12. वाक्यों में आवश्यकतानुसार विराम, अद्र्धविराम आदि संकेतों का समुचित प्रयोग हो।
13. समाचार की भाषा मेंे एकरूपता होना चाहिए।
14. समाचार के महत्व के अनुसार बुलेटिन में उसको स्थान प्रदान करना।
✔️समाचार-सम्पादक की आवश्यकताएँ ➖
एक अच्छे सम्पादक अथवा उप-सम्पादक के लिए आवश्यक होता है कि वह समाचार जगत में अपने ज्ञान-वृद्धि के लिए निम्नलिखित पुस्तकों को अपने संग्रहालय में अवश्य रखें ➖
1. सामान्य ज्ञान की पुस्तकें।
2. एटलस।
3. शब्दकोश।
4. भारतीय संविधान।
5. प्रेस विधियाँ।
6. इनसाइक्लोपीडिया।
7. मन्त्रियों की सूची।
8. सांसदों एवं विधायकों की सूची।
9. प्रशासन व पुलिस अधिकारियों की सूची।
10. ज्वलन्त समस्याओं से सम्बंधित अभिलेख।
11. भारतीय दण्ड संहिता (आई.पी.सी.) पुस्तक।
12. दिवंगत नेताओं तथा महत्वपूर्ण व्यक्तियों से सम्बन्धित अभिलेख।
13. महत्वपूर्ण अधिकारियों के नाम, पते व फोन नम्बर।
14. पत्रकारिता सम्बन्धी नई तकनीकी की पुस्तकें।
15. उच्चारित शब्द।
✔️समाचार के स्रोत ➖
कभी भी कोई समाचार निश्चित समय या स्थान पर नहीं मिलते। समाचार संकलन के लिए संवाददाताओं को फील्ड में घूमना होता है। क्योंकि कहीं भी कोई ऐसी घटना घट सकती है, जो एक महत्वपूर्ण समाचार बन सकती है। समाचार प्राप्ति के कुछ महत्वपूर्ण स्रोत निम्न हैं-
1. संवाददाता ➖ टेलीविजन और समाचार-पत्रों में संवाददाताओं की नियुक्ति ही इसलिए होती है कि वे दिन भर की महत्वपूर्ण घटनाओं का संकलन करें और उन्हें समाचार का स्वरूप दें।
2. समाचार समितियाँ ➖ देश-विदेश में अनेक ऐसी समितियाँ हैं जो विस्तृत क्षेत्रों के समाचारों को संकलित करके अपने सदस्य अखबारों और टीवी को प्रकाशन और प्रसारण के लिए प्रस्तुत करती हैं। मुख्य समितियों में पी.टी.आई. (भारत), यू.एन.आई. (भारत), ए.पी. (अमेरिका), ए.एफ.पी. (फ्रान्स), रॉयटर (ब्रिटेन)।
3. प्रेस विज्ञप्तियाँ ➖ सरकारी विभाग, सार्वजनिक अथवा व्यक्तिगत प्रतिष्ठान तथा अन्य व्यक्ति या संगठन अपने से सम्बन्धित समाचार को सरल और स्पष्ट भाषा में लिखकर ब्यूरो आफिस में प्रसारण के लिए भिजवाते हैं। सरकारी विज्ञप्तियाँ चार प्रकार की होती हैं।
(अ) प्रेस कम्युनिक्स ➖ शासन के महत्वपूर्ण निर्णय प्रेस कम्युनिक्स के माध्यम से समाचार-पत्रों को पहुँचाए जाते हैं। इनके सम्पादन की आवश्यकता नहीं होती है। इस रिलीज के बाएँ ओर सबसे नीचे कोने पर सम्बन्धित विभाग का नाम, स्थान और निर्गत करने की तिथि अंकित होती है। जबकि टीवी के लिए रिर्पोटर स्वयं जाता है
(ब) प्रेस रिलीज ➖ शासन के अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण निर्णय प्रेस रिलीज के द्वारा समाचार-पत्र और टी.वी. चैनल के कार्यालयों को प्रकाशनार्थ भेजे जाते हैं।
(स) हैण्ड आउट ➖ दिन-प्रतिदिन के विविध विषयों, मन्त्रालय के क्रिया-कलापों की सूचना हैण्ड-आउट के माध्यम से दी जाती है। यह प्रेस इन्फारमेशन ब्यूरो द्वारा प्रसारित किए जाते हैं।
(द) गैर-विभागीय हैण्ड आउट ➖ मौखिक रूप से दी गई सूचनाओं को गैर-विभागीय हैण्ड आउट के माध्यम से प्रसारित किया जाता है।
4. पुलिस विभाग ➖ सूचना का सबसे बड़ा केन्द्र पुलिस विभाग का होता है। पूरे जिले में होनेवाली सभी घटनाओं की जानकारी पुलिस विभाग की होती है, जिसे पुलिसकर्मी-प्रेस के प्रभारी संवाददाताओं को बताते हैं।
5. सरकारी विभाग ➖ पुलिस विभाग के अतिरिक्त अन्य सरकारी विभाग समाचारों के केन्द्र होते हैं। संवाददाता स्वयं जाकर खबरों का संकलन करते हैं अथवा यह विभाग अपनी उपलब्धियों को समय-समय पर प्रकाशन हेतु समाचार-पत्र और टीवी कार्यालयों को भेजते रहते हैं।
6. चिकित्सालय ➖ शहर के स्वास्थ्य संबंधी समाचारों के लिए सरकारी चिकित्सालयों अथवा बड़े प्राइवेट अस्पतालों से महत्वपूर्ण सूचनाएँ प्राप्त होती हैं।
7. कॉरपोरेट आफिस ➖ निजी क्षेत्र की कम्पनियों के आफिस अपनी कम्पनी से सम्बन्धित समाचारों को देने में दिलचस्पी रखते हैं। टेलीविजन में कई चैनल व्यापार पर आधारित हैं।
8. न्यायालय ➖ जिला अदालतों के फैसले व उनके द्वारा व्यक्ति या संस्थाओं को दिए गए निर्देश समाचार के प्रमुख स्रोत हैं।
9. साक्षात्कार ➖ विभागाध्यक्षों अथवा अन्य विशिष्ट व्यक्तियों के साक्षात्कार समाचार के महत्वपूर्ण अंग होते हैं।
10. समाचारों का फॉलो-अप या अनुवर्तन ➖ महत्वपूर्ण घटनाओं की विस्तृत रिपोर्ट रुचिकर समाचार बनते हैं। दर्शक चाहते हैं कि बड़ी घटनाओं के सम्बन्ध में उन्हें सविस्तार जानकारी मिलती रहे। इसके लिए संवाददाताओं को घटनाओं की तह तक जाना पड़ता है।
11. पत्रकार वार्ता ➖ सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थान अक्सर अपनी उपलब्धियों को प्रकाशित करने के लिए पत्रकारवार्ता का आयोजन करते हैं। उनके द्वारा दिए गए वक्तव्य समृद्ध समाचारों को जन्म देते हैं।
उपर्युक्त स्रोतों के अतिरिक्त सभा, सम्मेलन, साहित्यिक व सांस्कृतिक कार्यक्रम, विधानसभा, संसद, मील, कारखाने और वे सभी स्थल जहाँ सामाजिक जीवन की घटनाएँ मिलती हैं वे सभी समाचार के महत्वपूर्ण स्रोत होते हैं।
आज के दौर में इस क्षेत्र में रोजगार की बहुत सारी संभावनाएँ हैं। फिलहाल इसके कुछ महत्वपूर्ण पक्ष पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। दरअसल समाचार की भाषा सरल और सहज होनी चाहिए। समाचार के वाक्य छोटे-छोटे होनें चाहिए। किसी भी धर्म, जाति और वर्ग की गरिमा को ध्यान में रखते हुए समाचार तैयार करना चाहिए। समाचार की प्रस्तुति राष्ट्रहित, एकता और अखंडता को ध्यान में रखकर करनी चाहिए।
समाचार लेखन, संपादन और विविध माध्यमों के लिए पत्रकारिता का कार्य किसी भी मिशन से बढ़कर है। इसके माध्यम से देश व समाज के प्रति बहुत बड़ी चुनौती, जिम्मेदारी, उत्तरदायित्व और कर्तव्यनिष्ठा है। जिसका ईमानदारी से निर्वहन करते हुए देश को गौरवान्वित करना है। भारत देश की एकता, अक्षुण्णता और अखंडता का सुदृढ़ीकरण करना है।
➖ अशोक सिंह.
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें