हिंदी के प्रति बढ़ती अरुचि

हिंदी भाषी प्रदेश में हिंदी के प्रति बढ़ती अरुचि…

हाँ जी, बात हो रही है उत्तरप्रदेश की। आप भी चौंक उठे होंगें। जिस प्रदेश की मातृभाषा हिंदी है, जहाँ आम जनमानस भी हिंदी, अवधी, बुंदेली, ब्रजभाषा और भोजपुरी बोलते हैं। जिनकी जन्मजात बोली हिंदी या हिंदी का ही स्वरूप रहा है। उन्हीं लोंगों में हिंदी भाषा व विषय के प्रति अरुचि पैदा होना दुर्भाग्य की बात है।

मनुष्य को अपनी भाषा और जन्मभूमि से बहुत लगाव होता है। उसपर उनका जन्मसिद्ध अधिकार होता है। उसमें उन्हें महारथ हासिल होती है। पर वर्तमान समय में हालात कुछ और हैं। एक हिंदी भाषी प्रांत में सर्वाधिक छात्र हिंदी विषय में अनुत्तीर्ण होंगें इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। पर अब ये कल्पना की बातें नहीं है आज हकीकत बनकर सामने खड़ी है। आज मनीषियों व बुद्धिजीवियों के बीच चर्चा का अहम विषय बना हुआ है। 

आप सोचिए जरा….हाल ही में उत्तर प्रदेश में कक्षा बारहवीं का परीक्षा परिणाम घोषित हुआ और जिसमें लगभग 2 लाख 70 हजार विद्यार्थी हिंदी विषय में अनुत्तीर्ण हुए हैं। जबकि अंग्रेजी एक विदेशी भाषा है जिसे कठिन समझ जाता था आज लोंगों की सोच गलत साबित हो रही है। अंग्रेजी विषय में 5 लाख 2 हजार छात्र अनुत्तीर्ण हुए हैं अर्थात उनके लिए हिंदी की अपेक्षा अंग्रेजी आसान है। यह आँकड़ा बारहवीं का है। हाईस्कूल के छात्र भी पीछे नहीं हैं। उन्होंने अपने अग्रजों का अनुसरण किया है। शायद उनकी सोच भी ठीक है… हम पीछे क्यों रहें..? तो दसवीं के छात्रों में भी हिंदी विषय में असफलता की होड़ सी लग गई। दसवीं के लगभग 5 लाख 27 हजार छात्र हिंदी विषय में अनुत्तीर्ण हुए हैं।

आज ये मुद्दा घोर चिंतन का विषय बना हुआ है। जब उत्तर प्रदेश में हिंदी की दुर्दशा हो रही है तो अन्य राज्यों के बारे में क्या कहा जाए..? एकतरफ पूरा विश्व हिंदी का लोहा मान रहा है। विश्व के अधिकांश देश हिंदी भाषा को पाठ्यक्रम में शामिल कर रहे हैं। वहीं हिंदी के घर में ही उसकी दुर्दशा हो रही है। बेशक वर्तमान परिपेक्ष्य में कहा जा सकता है कि लोंगों में अब अपनेपन की भावना नहीं है। कहा जाता है कि व्यक्तित्व का विकास निजभाष व मातृभाषा के माध्यम से ही होता है। जिस व्यक्ति की पकड़ अपनी मातृभाषा पर होती है वह दूसरे विषयों को भी आसानी से सीख लेता है।

उत्तरप्रदेश एक ऐसा राज्य है जहाँ से अनगिनत साहित्यकार हुए हैं और सभी ने हिंदी साहित्य को संपन्न बनाने में अहम योगदान दिया है। संत तुलसीदास, कबीरदास, रविदास, प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पंत, अयोध्या सिंह हरिऔध, रामधारी सिंह दिनकर, मैथिलीशरण गुप्त, सूरदास..आदि ने हिंदी भाषा को सिर्फ विकसित ही नहीं किया बल्कि उसके गौरव को बढ़ाया है। पर दुर्भाग्य के साथ आज कहना पड़ रहा है कि इसी प्रदेश में हिंदी विषय की ऐसी दुर्दशा होगी या हिंदी के छात्रों की ऐसी दुर्गति हिंदी विषय की वजह से होगी...बात कुछ हजम नहीं होती है पर सच है। 'हाथ कंगन आरसी क्या, पढ़े लिखे को पारसी क्या' समाचार पत्र से लेकर मीडिया तक चीख चीखकर कह रही है… ऐसा न कभी किसी ने देखा और न कभी सुना… अरे भाई हम कोरोना वायरस की बात नहीं कह रहे हैं..। आप गलतफहमी में बिल्कुल न रहें कोरोना के प्रकोप से मेरा बालबांका भी नहीं होगा। चिंता है तो सिर्फ हिंदी भाषा व उसके भविष्य को लेकर…. क्या होगा…? खैर तकनीकी का जमाना है, लोग टेक्नोलॉजी में हिंदी खंगालना चाहते हैं या फिर हिंदी में टेक्नोलॉजी खंगालने की चाहत रखते हैं पर जो उत्तरप्रदेश के युवापीढ़ी हैं वे इस पचड़े में पड़ना ही नहीं चाहते हैं। इसीलिए तो जाहिर कर दिए कि हिंदी से हमारी नहीं जमती है।

पर इतने से काम नहीं चलेगा। हिंदी के गौरव को बढ़ाने के लिए युवापीढ़ी को सजग होना पड़ेगा और इसमें हमारे और आपके जैसे लोग उनको जोड़ने का कार्य कर सकते हैं। सबसे पहले तो लोगों में से गलतफहमी को दूर करना है कि हिंदी बहुत आसान है। हिंदी के माध्यम से रोजगार की संभावनाएं कम हैं या नहीं हैं। लोंगों में हिंदी की अहमियत और उसके महत्त्व को बताना होगा। उनका कुशल मार्गदर्शन करके सही दिशा निर्देश देने की आवश्यकता है वरना हिंदी भाषा का पतन होने के आसार दिख रहे हैं।

जो भी बुद्धिजीवी हैं, जो हिंदी भाषा में रुचि रखते हैं, जो हिंदी विषय के माध्यम से रोजगार अर्जित किए हैं, जो आज हिंदी पर प्रभुत्व होने के कारण ख्याति अर्जित किये हैं - आप सभी से आग्रह है कि आज के परिवेश को ध्यान में रखते हुए हिंदी के प्रति सचेत हों और इसके प्रचार प्रसार पर ध्यान दें। लोंगों को इसके महत्त्व से अवगत करायें जिससे कि हिंदी भाषी व अहिंदी भाषी दोनों समूह के लोग हिंदी भाषा व विषय को अपनायें। हिंदुस्तान में हिंदी के परचम को सदैव लहरायें और विश्व में भी फहरायें। 

        "हिंदी मेरी भाषा है, हिंदी मेरी बोली है, हिंदी मेरी पहचान है, हिंदी मेरी शान है।"


प्रा. अशोक सिंह

☎️ 9867889171

                       


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