क्या मृत्यु से डरना चाहिए...?

क्या मृत्यु से डरना चाहिए……?

अगर हम बात मृत्यु की करते हैं तो अनायास आँखों के सामने किसी देखे हुए मृतक व्यक्ति के शव का चित्र उभरकर आ जाता है। मन भी न चाहते हुए शोकाकुल हो उठता है। आखिर ऐसी मनस्थिति के पीछे क्या वजह हो सकती है…? जबकि आज के परिवेश में घर के अंदर भी हमें दिन में ही ऐसी लाशों को देखने की आदत सी हो गई है। दूरदर्शन व अन्य चैनलों पर प्रसारित होने वाले धारावाहिकों के माध्यम से आपको मृत्यु की घटनाएँ आये दिन देखने को मिलती है। एक प्रकार से इंसान को सहज हो जाना चाहिए पर ऐसा नहीं है। वह तटस्थ नहीं रह पाता है, वह अपने आवेगों को नियंत्रित नहीं कर पाता है।
जबकि इस सृष्टि का नियम है कि जिसने भी जन्म लिया है उसे मरना है….. यही अटल सत्य है। जीवन का शाश्वत नियम है। इंसान भी इस तथ्य से बखूबी वाकिफ है पर खुद को समझा पाना मुश्किल होता है। सोचिए जरा…. जन्म और मृत्यु के बिना जीवन संभव है…. अरे भाई जन्म और मृत्यु के बीच का सफर ही तो जीवन कहलाता है। हाँ ये हुई न बात…. जीवन में जन्म - मृत्यु ही है…. यही तो मृत्युलोक है। 
आइए जीवन को समझने का प्रयास करते हैं। पर जीवन को समझने के लिए सबसे पहले हमें जन्म और मृत्यु को समझना होगा… जीवन जन्म से आरंभ होता है और मृत्यु के साथ समाप्त होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि जन्म और मृत्यु जीवन के दो छोर हैं। एक छोर से दूसरे छोर तक का सफर ही जीवन है। अतः जन्म के जिस छोर से जीवन का आरंभ होता है, मृत्यु के दूसरे छोर पर वह खत्म होता है। इस दौरान इंसान सुख-दुःख, आशा-निराशा, उतार-चढ़ाव और लाभ-हानि का सामना करता है। इन सबके साथ इंसान भेदभाव करता है। सुख पाने के लिए लालायित रहता है पर दुःख से कोसों दूर भागता है। लाभ पाने के लिए कोई भी कृत्य करने को तत्पर रहता है पर हानि शब्द सुनने मात्र से कलेजा मुँह को आ जाता है। जैसे जन्म को तो इंसान सुंदर मानता है लेकिन मृत्यु को असुंदर और कष्टदायी समझता है। जबकि सत्य यह है कि जन्म अगर सुंदर है तो मृत्यु भी तो सुंदर होनी चाहिए अर्थात उसे सहज स्वीकार करना चाहिए। उसे तकलीफ़ों से भरा हुआ मानने के कारण ही इंसान मृत्यु की बात करने से कतराता है, उससे दूर भागता है। इंसान को मृत्यु से भागने और डरने की जरूरत नहीं है बल्कि उसे समझने की जरूरत है। समझने और स्वीकार करने पर ही इंसान उसके भय से मुक्त होगा। अतः मृत्यु के भय से मुक्त होने के लिए इसे समझना ही है कि जन्म की तरह मृत्यु भी सुनिश्चित है। यह संसार नश्वर है। सबकुछ क्षणभंगुर है। मानव जीवन भी तो नश्वर और क्षणभंगुर है। द्वापर में अर्जुन भी मृत्यु से भ्रमित हो गए तब श्रीकृष्ण ने उनके भ्रम को दूर किया था। भ्रम से छूटकारा पाए बिना जीत संभव नहीं थी। मृत्यु से ही सदगति की प्रप्ति होती है अर्थात आत्मा को दूसरा नया चोला या शरीर धारण करने का अवसर प्राप्त होता है। पर इंसान सबकुछ जानते और समझते हुए भी अपने चारो ओर स्वार्थ, लोभ, मोह-माया आदि का घेरा अज्ञानतावश बना लेता है। जिसके कारण मृत्यु से भयभीत होता रहता है। अतः इंसान को मृत्यु को समझना होगा तब कहीं जाकर उसे इसके भय से मुक्ति मिल पाएगी।

➖ अशोक सिंह

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