शामत मुझ पर ही आनी है....

 

शामत मुझ पर ही आनी है...

शादी अपनों की हो

या किसी बेगाने की

खर्चा उतना ही है जी

श्रीमतीजी के जाने की।

जब देखो तब सुनाती रहती हैं

खर्च ही क्या है? खर्च ही क्या है?

सुन – सुनकर कान पक गया

दुकानों के चक्कर काटते-काटते

सच मानों पूरा दिन बीत गया….

जेब खाली होकर क्रेडिट पर आ गया।

सोचा छोड़ो अब तो झंझट छूटा

तभी खनकती आवाज सुनाई दी

अभी तो बाकी है घड़ी – सोनाटा

गुड़िया के कानों का झुमका….

कमर का करधन भी था टूटा

बस एक बिछिया भी झन्नाटा।

हाय राम! बजट तो ढीला हो गया

छह महीनें का कर्ज भी लद गया

जानें से पहले ही बेड़ा गर्क हो गया

हवाई जहाज का टिकिट जो लिया

दिल तो पूरी तरह से बैठ गया….

आँखों के आगे अँधेरा सा छा गया।

ये क्या! सांस अब उखड़ने लगी

रह रहकर त्योरियाँ भी चढ़ने लगी

अचानक दोनों आँखे फड़कने लगी

वो सजधजकर तैयार होने लगी…।

मेरे पास आकर बोलती हैं

माना कि बेगाने की शादी है

पर ये हाथ रोकड़े का आदी है

बस आपसे रोकड़े की मुनादी है

तिजोरी पहले से ही खुलवा दी है।

अपनों की बात तुम छोड़ो

ये तो बेगाने की शादी है

ज्यादा समान नहीं खरीदी

अरमानों को भी सुला दी है।

मैंने भी कुछ यूँ फरमाया –

हाँ भाग्यवान! बेगाने की शादी है

पर मेरी तो पूरी बरबादी है……

शादी अपनों की हो या बेगानों की

शामत मुझपर ही तो आनी है…।

➖ अशोक सिंह ‘अक्स’

#अक्स

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