सवेरे - सवेरे उठकर देखा

 

सवेरे - सवेरे उठकर देखा
सुनहरी किरण छिटके देखा
चिड़िया अभी-अभी थी आई
नव सृष्टि की गीत सुनाई।

मन भी उमंग जोश से भरा
हर पल लगता था सुनहरा
सुगंधित संगीतमय वातावरण
अंधकार के पट का अनावरण।

मैंने किरणों से कहा,
मुझे थोड़ी सी ऊर्जा दोगी
चिड़िया से कहा,
गाने का तजुर्बा दोगी
नव किसलय दल से कहा,
जीवन स्नेह से भर दोगी
फूलों की खुशबू से कहा,
हर्षोल्लास से भर दोगी...!

हाँ - हाँ की प्रतिध्वनि,
जैसे हाँ - हाँ भर दूँगी...!
स्वर अचकाया था
भावुकता से लड़खड़ाया था..!
अनुभव से परे का व्यवहार
जीवन प्रकृति का प्यार।

जो भाग्यशाली कर्मवीर हो
त्याग नींद जल्दी उठते हों...!
बेफिक्र हो दुनिया में जीते हों
वे ही जीवन में आनंदरस पीते हैं
अनकहा व अनसुनी स्वर सुनाई दी
मुझे इसकी है परम आवश्यकता।

सवेरे की शीतल हवा
जैसे हो अमरता की दवा
घासों की हरियाली
जैसे जीवन की खुशहाली।

ऐसे ही मिलती है
मुट्ठी भर जीने की आस
भरता गजब का उल्लास
अँधियारा छट मिलता उजास।

मैं धन्य-धन्य हो उठा बंधुवर
कृतज्ञ हो उठता हूँ आज
पा ऊर्जा, तजुर्बा, स्नेह व ख़ुशीहाली
बिन माँगे मिलती हैं चीजें निराली
सुकून व असीम शांति..।

पर ये क्या....!
सबकुछ होते हुए भी
दुःखी क्यों...?
आँखों में मोती से आँसू
आखिर क्यों...?

अंतर्मन ने कहा ➖
पगले ये कृतज्ञता का भाव है
दुःख के नहीं खुशी के आँसू हैं
प्रकृति कितनी लुभावनी है
परम दयालु और प्राणदायिनी है ।

➖ अशोक सिंह 'अक्स'
#अक्स


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