विशुद्ध किसान गुदड़ी के लाल

 विशुद्ध किसान गुदड़ी के लाल


हम किसान हमें खेती प्यारा

हम कुछ भी उगा सकते हैं

इस जग में दूजा काम नहीं 

जो मेरे मन को भा सकते हैं।


हम उस किसान के बेटे हैं

संभव है तुझको याद नहीं

जय जवान जय किसान का नारा

बिल्कुल तुझको है याद नहीं।


ईमानदारी जिसके रग-रग में समाया

बेमिसाल ऐसा इनसान कहाँ

सादा जीवन और उच्च विचार हो

मिलता ऐसा गुदड़ी का लाल कहाँ...?


इस धरती पर हमने अब तक

शास्त्री जैसा जननेता न देखा

काम किसी का भले न किये हो

पर भूखा न किसी को लौटाते देखा।


जब उत्तर में दुश्मन 

रण की तृषा लिए आया

तब लालबहादुर ने फिर 

अपना बिगुल बजाया

जता दिया दुश्मन को कि 

ऐसा फौलादी सीना है यहाँ….।


जो नफरत की आग जलाते हो 

हम बुझा उसे भी सकते हैं 

गर अमन चैन न भाता हो तो

हम विध्वंस प्रलय ला सकते हैं

हर हर बम बम के नारों से

घाटी को दहला सकते हैं….।


हमसे लड़ने को रावण था चला 

सोने की लंका को जला डाला हमनें

राह देने से सागर जब अड़ा

तब रामसेतु बना डाला।


भूचाल हमारे पैरों में है

तो तूफ़ान बंद है मुट्ठी में 

हर हर बम बम के नादों से

तांडव भी दिखला सकते हैं 

दुश्मन भी डरकर थर्राया था

ताशकंद समझौता करवाया था

लड़कर नहीं जीत सका तो

कूटनीति को अपनाया था...।


शहीद तो हो गए गुदड़ी के लाल 

ताशकंद की बलिबेदी पर 

पर ऊँचा कर गए माँ का भाल

सदा हिमालय की चोटी पर

चिर समाधि में चले गए..

विशुद्ध किसान गुदड़ी के लाल….

पर जाते-जाते ऊँचा कर गए माँ का भाल....।


➖ प्रा. अशोक सिंह....🖋️

☎️ 9867889171

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