हे कवि मन हिंदी की जय बोल

 हे कवि मन, हिंदी की जय बोल


जिसने निजभाषा का मान बढ़ाया

हिंदी को जन - जन तक पहुँचाया

राजभाषा का दर्जा भी दिलवाया

हे कवि मन, हिंदी की जय बोल।


जो घर-घर में बोली जाती है

जो सबके मन को हरसाती है

सभी जाति धरम को भाती है

हे कवि मन हिंदी की जय बोल।


जिसके बावन अक्षर होते हमारे

कवि जिससे प्रकृति को चितारे

जो जनमानस के भाग्य सँवारे

हे कवि मन, हिंदी की जय बोल।


तुलसी सूर जिसके हैं नगमें

दूजी भाषा कहाँ है जग में

लगी हो बिंदी जिसके माथे में

हे कवि मन हिंदी की जय बोल।


गंगा जैसी लगती जो पावन

महीनें में समझो तुम सावन

भाषाओं में जो लगे लुभावन

हे कवि मन हिंदी की जय बोल।


बचपन से जिसने साथ निभाया

यौवन प्रीति का पाठ पढ़ाया

ज्ञान अमृत का पान कराया

हे कवि मन हिंदी की जय बोल।


जिससे गागर में सागर भरते

गहरे पानी में गोता लगाते

परिश्रम का मीठा फल पाते

हे कवि मन हिंदी की जय बोल।


जिसने जीने का राह दिखाया

रामचरित मानस रचवाया

बहुजन हिताय को श्रेष्ठ बताया

हे कवि मन हिंदी की जय बोल।


जिसके बोल लगते अनमोल

सुनने में मिसरी के घोल

बाजे में समझो इसे ढोल

हे कवि मन हिंदी की जय बोल।


जिससे सीखे वंदन अभिनंदन

विनम्र होकर करते जो नमन

स्वागत में इसके बिछाते सुमन

हे कवि मन हिंदी की जय बोल।


जिसने हमको पहचान दिलाया

जीने का स्वाभिमान जगाया

शिक्षक संचेतना से मिलवाया

हे कवि मन हिंदी की जय बोल।


राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना

हिंदी से भरती नव चेतना

हम सबकी जुड़ी है भावना

हे कवि मन हिंदी की जय बोल।


➖प्रा. अशोक सिंह

☎️ 9867889171


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